Friday, July 20, 2007

हे बालक, सखी संप्रदाय वाले संजय बैगानी

बालक, तुम्हारी शिकायतें तो शुरु से आती थी। मैं यह सोचती थी कि बालक धीरे धीरे सुधर जायेगा। तसल्ली यह भी रहती थी कि अभी फ़तूर चढा है। फ़िर शांत हो जाओगे। बालक, बस तुमसे एक ही चिन्ता नहीं रहती कि तुम मेरे दुसरे उद्दंड बालक सुभाष भदौरिया की तरह गंदी और भद्दी गालियां नहीं बकोगे।

मगर बालक, तेरा भी बार बार झगडा देखकर दिल घबराता है। बालक, तू कभी हिन्दु मुसलमान पर बहस करता है। कभी गांधी पर, कभी मोदी के गुजरात पर। कोई कह रहा था कि तु मोदी को खुराक पहुंचाता है। जहां भी झगडा चल रहा होता है तु वहां चला जाता है और बिन मांगे अपनी राय रखने लगता है फ़िर विवाद बढता है और कोई तेरी आलोचना कर देता है तो तुझसे बरदास्त नहीं हो पाता। तुरंत गुस्सा आ जाता है। बालक, इतना गुस्सा आता है तो विवाद में पडता क्यों है। क्यों हर तरफ़ जुम्मेदारी लेने घुमता है। बालक, कोई कह रहा था कि एक बार झगडा मचा और जब तक तु पहुंचा तो झगडा बंद हो गया था, तब तुझे बहुत दुख हुआ और तु टिपीनी करके आया था कि देर हो गई आने में। यहां तो सब शांत हो गया बरना हम भी यज्ञ में आहुति दे लेते। बालक, यह क्या हाल बना लिया है।

जब बहुत दिन तक कुछ नहीं होता तो तुझे तबियत खराब लगने लगती है तो कभी हिन्दी, फ़िर हिन्दी सम्मेलन पर हल्ला मचाने की कोशिश करता है। बालक, कोई हल्ला नहीं मच पाया उन पर। अब क्या नया सुगुफ़ा छोडने वाला है। बडा डर लगा रहता है।

अभी कुछ समय के पहले जब सब उस गुजरात की लडकी पूजा के समर्थन में बात कह रहे थे तब तुम अखबार से कांट छांट कर दुसरा पक्ष तलवार भाजने के लिये उठा लाया। अखबार तो सब पढते हैं, बालक। फ़िर तुझको ही क्यों नजर आया कि सबको पढवाऊं। बस, बहुत दिन विवाद न हो तो तेरा मुंह उतर जाता है। बालक, पहले तो तेरा ऐसा स्वभाव नहीं था। कहीं तेरी संगत उस सुभाष भदौरिया से तो नहीं हो गई है। मैने उसे बहुत डांटा है। अभी और डाटूंगी और जरुरत पडी तो चांटा भी लगा दुंगी। अगर ऐसा है तो बहुत बुरी बात है। बालक, उसका साथ तुरंत छोड दे। उसके साथ में कोई मत खेलो। वो संक्रमन फ़ैलाने वाला कीड़ा है। सब गंदगी करेगा। तु उसके दिखते ही पत्थर मारकर भाग जाया कर। पाप नहीं लगेगा और तु बिगडेगा भी नहीं।

बालक, कोई बता रहा है कि तु नारद के तानाशाह कर्णधारों में से एक है। वो तो कह रहा था मुख्य तानाशाह घुम रहे हैं तो सारी तानाशाही की ताकत तेरे पास दे गये है क्योंकि तु उस मंडली का नम्बर दो है उपर से। बालक, यह कैसी तानाशाही है कि माँ भवानी को भी तुम लोग नारद पर नहीं आने देते। मां तो बालक, भदौरिया की तरह गाली भी नहीं बकती। बस, बिगडते बच्चों को फ़टकारती है। बालक, क्या संस्कार सिखाना गलत है। क्या अपनी भदौरिया जैसी पागल और शराबी औलाद को डांटना गलत है जो मां को ही गाली बकता है। उसको बैन करके तुमने अच्छाई का परिचय दिया है। देखो, चिट्ठाजगत और ब्लॉगवानी कब तक इस गंदगी को अपने यहां सजा कर रखते हैं।

बालक, मेरी बात मान जाये तो अच्छा। तु तमाम विवाद में मत पड़ा कर। बहरहाल कोई बता रहा था कि कोई तुझको कदाचित गंदा नेपकीन कह रहा था। फ़िर बात इतनी बढ गई कि उस मुर्ख उद्दंड बालक ने तुझे ६ इंच छोटा करके जान से मारने की धमकी दे डाली। बालक, मै तो घबरा ही गई थी। दो दिन सो नहीं पाई। तु हमेशा कहता है कि यह विचारों की नहीं संस्कारो की लड़ाई है। इसका मतलब तु भी मानता है कि यह लडाई है। क्या जरुरत है इसमे पडने की।

फ़िर तु दिल्ली ब्लॉग मिटिंग मे भी चला गया। जायेगा क्यूं नही। तेरे मंडली के बडे तानाशाह आ रहे थे। जी हजुरी करने गया होगा ताकि तेरी तानाशाही भी आड में चलती रहे। वहां कोई विवाद का मुद्दा नहीं मिला क्या।

मुझे तो लगता है बालक, तु अपनी आदत के अनुसार वहां भी सफ़ाई देने गया होगा। तु हर जगह सफ़ाई देने क्यों पहुंच जाता है और फ़िर भी अपनी बात पर अडा रहता है।

बालक, क्यों अपने दुस्मन इक्कठे करते जा रहा है। गुस्से पर काबु पाना सीख। गुस्से मे किसी की तौहीन करने के बजाये उस समय लिखा ही मत कर। हल्ला मचाने के लिये भदौरिया जैसे पागल गाली गलौज करते घुम रहे हैं। तु तो समझदार है। कान पकड कर माफ़ी मांग मां से। अब झगडा मत किया कर। फ़िर से कोई जान से मारने की धमकी न दे दे।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

Wednesday, July 18, 2007

हे बालक , ब्लाग लिखने वालो

बालकों, मैने कल सुना कि तुम लोग मां से डर रहे हो। बालकों, मां तो तुम सबकी रक्षा के लिये है। तुम सब से प्यार करती है। मां गन्दे बच्चों को डांटती है। सही राह दिखाती है। ज़ब बालक सुधर जाता है और अपनी गल्ती मान जाता है, तो उसे शाबासी भी देती है। प्यार करती है। ब्लागवानी वाले बालक को मैने शाबासी दी।

बच्चों, अभी पिछली बार ज़ब मैने भदोरिया को डांटा तो वो बदमाश बालक गंदी गंदी बातें करने लगा।। मै उसे सुधारना चाह रही हुं। वो तो पूरी ही तरह से बिगडा बच्चा है। उसकी बचपन की संगत और पागलपन का दौरा इसके लिये जुम्मेवार है। मैं अभी उसे और डांटूगी और ज़रुरी होगा तो मारुंगी भी। बच्चों, कई बार बिगडते बालक को सुधारने के लिये चांटे भी लगाना पडते हैं।

बच्चों, तुम सब कितने प्यार से रहते हो। मुझे देखकर अच्छा लगता है। तुम सब इस गन्दे बालक को साथ में मत रखना, बिगड जाओगे। फिर तुमको भी डांट पडेगी। यह तुम्हारे साथ खेलने आये तो भगा देना। पहले ही कई बार कई जगह से इसे भगाया गया है मगर यह हर बार नई नई ज़गह जाता रहता है। मुझे तो किसी ने बताया है कि बहुत शराब भी पीने लग गया है यह बदमाश बालक और उसी के नशे मे गंदी गंदी बात करता है। नशे मे लिखता है।

बाकी सब बच्चे आपस में प्यार से खेलो। आपस में लडना मत। गंदी बात मत करना। मै देख रही हुं। कोई भी गल्ती करोगे तो समझाउंगी और डाटूंगी। बस, मां को इतना ही चाहिये की उसके बच्चे अच्छे निकले। कोई उन्हें बिगाडे नहीं और वोह बिगडे नहीं।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

Monday, July 16, 2007

हे बालक, डॉ सुभाष भदौरिया अहमदाबाद वाले

बालक, तुम अपने नाम के साथ यह डॉक्टर लगाना बंद कर देवो। तुम्हारी भाषा, तुम्हारी सोच, हर जगह अपनी ढपली बजाना बिना राग की, तुम्हारी बदतमीजी आदि देखकर कहीं सच्ची के तमाम के पी एच डी भी डॉक्टर शब्द के इस्तेमाल न बंद कर जायें। तब जुम्मेदार तुम कहलाओगे।

बालक, तुझे यह कैसे गुमान है कि तु गजल के शिल्प को बहुत अच्छी तरह समझाता है और वो ही तु हर जगह समझाता घुमता है। बालक, कोई तुझे सुनना नहीं चाहता। कारण तेरी बदतमीजी है। जब तुझे सीधे बात करने की तमीज नहीं तो तु क्या शिल्प पर व्याख्यान करेगा। बालक, गजल और कविता में मुख्य बात मन के उठते भाव हैं। वह तो तेरे सबने देखे हैं। तेरे मन में तो इतनी गंदगी भरी है कि तु क्या बेहतर भाव उठायेगा। बालक, तेरा मन गटर के समान है और वहां से सिर्फ़ बदबु ही उठती है।

बालक, इतना अहम तो गालिब में भी नहीं रहा होगा। तु कहता है कि कविता के नाम पर की जाने वाली फ़ूहड़ता को लेकर लिखे गये मेरे एक ही लेख से उनकी पोल खुल गयी मैं रोज ग़ज़ल के शिल्प पर कविता पर संज़ीदा लेख लिखकर समझाता पर वे मानते नहीं थे । कैसी बचकानी बात करता है। पागल की नजर में उसके सिवाय सारी दुनिया बावली होती है। बस इतनी सी बात है।

बालक, पहले जानकारी तो ले ले फ़िर अपने कुएं से टर टर करना। बालक, जब तुझे यह तक नहीं मालूम कि क्या नारद अमरीका से चलता है कि भारत से, लेकिन तु लग गया बस लिखने अपनी विक्षिप्त बुद्धी की अधकचरी संडाध मारती जानकारी के आधार पर कि चोर चोर मौसेरे भाई E कविता के संचालक अनूपजी अमेरिका के नारद भी शायद अमरीकी हैं।

बालक, यह सब जानकारीयां मिल सकती हैं, मगर तेरी आंख खुले तब तो दिखे। तु तो लड़कियों की चित्र अपने मन पर खींचतें उसी में डुबा है। तुझे कैसे दिखेगा। बालक, तु इतना पागल हो चुका है, कि यह जानने की ताकत नहीं रही। यह जानकर मां को दुख हुआ।

बालक, तु तो कुछ समय पागलखाने में भी इलाज करा रहा था। फ़िर बिना पुरा इलाज कराये क्युं भाग आया। बालक, तेरे जैसे मानसिक हालात के आदमी की समाज में जगह नहीं है। तु इस बात को जितनी जल्दी समझेगा, सब के लिये उतना अच्छा होगा।

बालक, तेरी हालत मुझसे देखी नहीं जाती। तु कैसे फ़ड़फ़ड़ा रहा है। जैसे किसी कुत्ते को किसी ने डंडे से मारकर भगाया हो। यह तु क्या फ़ालतु की बात बड़बडाने लगा, बालक।

चूंकि हम नारद पर मर चुके हैं अब हमारा प्रेत सब बयान करेगा।

हम भेड़ियों के मुँह और पूछ दोनो तरफ़ से मशाल घुसायेंगे तब भेड़ियों को बात समझ में आयेगी

फ़िर तु कहता है कि नारद, नारद के भेड़ियो, कौवो तुम शरीर को तो मार सकते हो तुमने हमें मारा।अब नारद परहमारी प्रेत आत्मा भटकेगी कविता और साहित्य के नाम पर किये जाने वाले तुम्हारे लुच्चपने की खबर लेगी। किस गुमान में है तु बालक।

जब बालक, तेरी किसी ने नहीं सुनी। सबने तुझे लात मार मार कर भगाया तो तेरे प्रेत को कौन सुनेगा। तु तो अपना ब्लोग देख। बालक जरा बताना कितने लोग तेरी तारिफ़ करने आते हैं। फ़िर भी तु बेशर्मों की तरह लिखता जाता है और कहता है मै शिल्प जानता हुं। बालक, क्या इतनी बडी दुनिया में कोई तुझे और तेरे शिल्प ज्ञान को समझ नहीं पा रहा है।

बालक, यह तु क्या उम्मीद लगाये बैठा है और किस तरफ़ इशारा कर रहा है

हम अहमदाबाद के हैं तुम ये भी राज़ खोलो कि हमारे कातिल हमारे शहर अहमदाबाद में ही छुपे हुए हैं।
बालक, तु गलतफ़हमी में है कि कोई तेरी सुनेगा। पागल पर पत्थर फ़ैके जाते हैं, उन्हें सुना नहीं जाता।

बालक, सोचती हुं उन ब्च्चों का भविष्य क्या होगा जिनको तेरे जैसा अहंकारी बदतमीज बेदिमाग पढा रहा है। साथ में तु एन सी सी में प्रशिक्षक बताता है। बालक, कहीं तु एन सी सी केम्प में तंबु और दरी समेटने तो नहीं जाता। अगर नहीं, तो देश की सुरक्षा का भविष्य खतरे में है।

बालक, तुने जितनी टिप्पनी और गंदगी यहां और अन्य जगह फ़ैलाई है, क्या वो उन लोगों को पता है जिनको तु पढाता है। क्या तु उनको वो सब पढ़वा पायेगा। बालक, मैं जानती हुं कि तु कहेगा हाँ। बालक, इसीलिये कहती हुं तेरा इलाज जरुरी है।

बालक, तु चला जा। खुद से पागलखाने में जमा हो जा। जमा करवाने वाले में अपनी बीबी का नाम लिखना। उसको कुछ पैसे मिल जायेंगे। अरे तु तो इतना नालायक है कि तुने उससे अपने पवित्र संबंधो को भी अपने एक लेख मे मिट्टी में मिला दिया था। कभी उसे अपनी बीबी को पढ़वाना तो। तु नहीं पढ्वायेगा तो हम कोशिश करके पहुंचवा देंगे। तु कहता है कि अपने पास है ही क्या घर में सारा सामान किश्तों पे लिया है मकान सरकारी ऋण पर।खलिश बच्चे अपनी मेहनत के हैं अगर कहीं किसी मित्र या शत्रु ने योगदान दिया हो तो हम भी ऋण चुकाने को तैयार हैं। ऐसे कहते तुझे शरम न आई। बालक, तुने तो अपने मां की कोख को बदनाम कर दिया।

बालक, जब तुझे अपनी बीबी के सदचरित्र होने पर शक है। बच्चे तेरे है उस पर शक है, जैसा तुने उपर कहा तो फ़िर और सारे शक बहुत छोटे हैं। बालक, तु कितना घटिया है मै तो सोच भी नहीं सकती। बालक, तुझ जैसे कुपुत को जनम ही न देती तो ठीक था। अब दुखी हो रही हुं क्या फ़ायदा।

बालक, पागलखाने में वो तुझे १०-२० डंडॆ मारेंगे। वो तो तु वैसे भी रोज ही खाता है। बिजली के झटके देंगे, दवा देंगे। उम्मीद तो नहीं है बालक, मगर शायद तु ठीक हो जाये। बस यही सोचती रहती हुं।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

Saturday, July 14, 2007

हे बालक, यशवंत सिंह भड़ास वाले

बालक, माँ हुँ न। दुख होता है तेरी हालत देखकर। तुझ जैसी औलाद को जनम देकर न सिर्फ़ मेरी बल्कि हर माँ की कोख काली हो गई है। बालक, किस मिट्टी के बने हो। कभी सोचा है कि तुम्हारे भी परिवार है। उनकी नजर भी तुम्हारे लिखे पर पड़ सकती है। बालक, तु न सिर्फ़ इन्सानियत मे नाम पर एक बदनुमा धब्बा है बल्कि पुरी पत्रकारिता जगत को तु बदनाम कर रहा है। बाकि के पत्रकार क्यों चुप बैठे हैं, बालक, यह मैं नहीं समझ पा रही हुँ।

बालक, तु तो शुरु से गंदी भाषा का समर्थक रहा है। न भरोसा हो तो खुद का लिखा और अपने भाईयों का लिखा खुद पढ़ कर देख न, बालक।

क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं

बालक, मैं तो तुझे पढ़ कर सोचने लगी कि तुझे तो तालीम देकर ही एक ऐसा पाप हो गया कि न तेरी पहली की पुस्तें मेरे साथ नरक जायेंगी बल्कि तेरा आने वाली पीढ़ियां भी तेरा नाम अपने से जुड़ा देखकर अपमानित महसूस करेंगी। अगर न भरोसा होता हो तो कभी अपनी पत्नी को कहना कि वो अपने परिवार में या पनी सहेलियों को तेरे ब्लाग का लिंक देकर पूछे कि कैसा लगा यह साहित्य...? बालक, तू अपने बच्चों के स्कूल में भी कभी यह बंटवा पायेगा। बालक, तुझे शरम आ जाये तो चिन्ता मत करियो, तेरे सुभचिन्तक तो बहुत जल्द तेरे ब्लाग को पहुँचा ही देंगे हर उस जगह, जहाँ लोगों को तेरा असल चेहरा पहचानना चाहिये। बालक, सुबह उठ कर पाऊडर की जगह खुद ही कालिख क्यों नहीं पोत लेता अपने चेहरे पर...? इतनी मेहनत की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।

बालक, अंकित माथुर ने तो वही किया जो तु करता आया है। फ़िर तु उससे नाराज क्यों हो गया...? इसका जुम्मेदार तो तु ही है न बालक। ऐसी भाषा का भारी समर्थक। तुने अंकित की पोस्ट ही हटा दी। तो तु भी तो नारद ही कहलाया, बालक। फ़िर विरोध कैसा नारद से...? तु भी तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगा रहा है। कहीं यह इसलिये तो नहीं बालक कि अंकित तेरी जमात का न हो, पत्रकार न हो जिनको तुने बदनामी के इस कागार पर पहुंचाया है।

बालक, तेरी इस सडांध मारती टीम में तो वो सुपारी मास्टर ६ इंच छोटा करने वाला राहूल पाण्डे जिसे अपने बाप दादाओं के पाण्डे होने पर शरम आती है, भी है। बालक, उसको समझा देना कि शरमाने की कोई बात नहीं है। क्योंकि वो उनकी औलाद नहीं है, वो तो सब संस्कारी हैं। बालक, मैं उन्हें जानती हूँ। वो भी इस उद्दंड बालक से अपना नाम जुडा देखकर शरम से मरे जा रहे हैं।

बालक, मुझे बताना कि क्या यह सब करके तुझे खराब नहीं लगता...? क्या तु कभी अपने आपसे बात नहीं करता...? क्या तुझे अपने आने वाले पीढ़ी के विशय मे कभी विचार नहीं आता...? क्या तुने कभी सोचा है कि आज नहीं, आज से काफ़ि समय बाद जब तेरी औलाद और उनका परिवार यह सब देखेगा तो उनको मुँह दिखा पायेगा...? क्या यह सब करके तु सारे पत्रकार समाज और इन्सानियत को बदनाम नहीं कर रहा...? कभी आराम से बैठ कर सोचना, बालक। क्या और कोई राह नहीं...? बस यही एक तरीका है...? अपने बीबी, बच्चों से ही पुछ कर देख ले, बालक। इस गंदगी में तुझे अपना नाम देते और तस्वीर चिपकाते शरम न आई...?

बालक, तेरे मुँह से यह बात सुनकर आश्चर्य होता है कि अंकित भाई, प्लीज, भड़ास को भड़ास ही रहने दीजिए, मस्तराम ना बनाइये। बालक, इसमें अंकित क्या करेगा...? यह तो तु और तेरे साथी मिलकर बना ही चुके हैं। उपर के लिंक देख न बालक।

बालक, तु कहता है कि जो भी लिखें उसे यह मानकर पोस्ट करें कि इसे हजारों गंभीर, प्रबुद्ध लोग पढ़ेंगे। महिलाएं-लड़कियां भी पढ़ेंगी। यह तुझे अब समझ आया। यह तु कह रहा है...? तेरा लिखा क्या इन लोगों के लिये सुगढ़ साहित्य है और अंकित भाई का लिखा मस्तराम। कहीं इसके पीछे तेरी कोई व्यक्तिगत भड़ास तो नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंकित माथुर पत्रकार हो ही न और तुम्हारे गुट में घुस आया हो। तेरी तो यह आदात रही है।

बालक, एक दिन तु ही कह रहा था न कि आरोप है कि बाज़ार की भाषा अश्लील है । भडासियों यह गाज कल को भडास पर भी गिर सकती है । भाई हम लोगों की भाषा भी सूटेड बूटेड बाबू लोगों जैसी पोकी पोकी नहीं है । हम सब ठहरे मस्त मलंग कब मुहँ ज्यादा खुल जाये और ठुस्की मार दे । तो भाई लोगों आपसी खींच तान थोडी देर को स्थगित करके जरा अपना विरोध दर्ज़ करिये । आज तुझे क्या हो गया...?

बालक किसी बात से डर गया है क्या...? या फ़िर कुछ आत्म ग्लानी मे दब गया है। बालक, वैसे तो तुने ऐसे काम किये हैं जो हमेशा के लिये हिन्दी और पत्रकारिता की दुनिया में एक बदनुमा दाग बन कर दर्ज हो चुके हैं। अगर आत्म ग्लानी वश, कुछ गलत कर लेने का या खुद को खतम कर लेने का मन बना रहा है तो वैसे तो यह पूरे हिन्दी ही नहीं, सारे समाज पर उपकार ही होगा। मगर फ़िर भी...

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

Friday, July 13, 2007

हे बालकों, देहली मिटींग की शुभकामनाएँ देती हुँ

हे बालकों, कल हिन्दी ब्लोगरों के कुछ लिक्खाडों की देहली में मिटींग होने वाली है। मेरी शुभकामनाएँ तुम लोगों के साथ है। कई सारे भाँति भाँति के लोग आएँगे।

वहाँ जितु होगा, जिसने खुद को नारद मुनी बनाकर अपने पैरों पर कुल्हाडी मार ली है। बहुत बडी भूल की बालक ने पर अब चेतने से क्या होगा जब चिड़िया खेत चुग कर छू हो गई। खैर यह बालक मेहनती है और चालबाज भी है। कोई ना कोई रास्ता ढूंढ ही लेगा।

वहाँ अमित भी होगा, जिसका पारा जब भी देखती हुं सातवें आसमान पर होता है। वैसे आजकल कार्टून बनाकर सबका और खुद का दिल बहला रहा है। माँ का आशीर्वाद है उसके साथ।

वहाँ सृजन होगा। माँ का लाडला है वो। उसका नाम तो नहीं ले सकती पर जानती हुं यह बालक बहुत होनहार है और होने से ज्यादा उसे होने का आभास रहता है। खैर यह बालक भी उन्नति करेगा।

वहाँ बालक अरूण भी होगा। पंगेबाज है। हर कहीं मतलब बे मतलब पंगे लेना उसका शौक है। पर सार्थक बातें भी करता है। आगे जाएगा यह बालक।

देख रही हुँ, वहाँ बालक संजय भी आएगा। यह बालक तैश में आ जाता है। कोई थोडा सा बहका दे तो पूरा बहक जाता है। पर यह बालक खरी खरी कहता है। चलो अच्छा है।

वहाँ मैथिली भी होगा। इस बालक ने अपने माता के लिए द्वार बंद कर दिए थे। पर फिर क्रोधित माँ के श्राप से बचने के लिए फिर से खोल दिए। यह बालक बहुत मेहनती है। नाम रोशन करेगा।

मेरा उद्दंड बालक राहुल आएगा कि नही पता नहीं। ना आए तो अच्छा है। वैसे भी उसने अपने मुँह पर इतनी कालिख पोत ली है कि किसी को क्या मुँह दिखाएगा। यह दर्द मुझसे ज्यादा कौन समझ सकता है।

माँ हुँ बालकों, चिंता होती है!

हे बालक, जय प्रकाश मानस

मैने कुछ दिन पहले तुम्हें पत्र लिखा था। बालक, क्या तुमने उसे देखा। फिर माँ की बात का जबाब क्यों नहीं दिया तुमने। बस लगने लगा कि कहीं तुम्हारी तबियत न खराब हो गई हो। दुख स्वभाविक है।

कहीं पुरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के लिये तुम अपने आप को जुम्मेदार तो नहीं समझने लगे...? तुम्हारे होने या न होने से वहाँ बिल्कुल अंतर नहीं पड़ा है। ऐसा मुझे किसी सचमुच के साहित्यकार ने बताया। वो तुम्हारी तरह झूठा विलाप नहीं करता इसलिये सरकार उसे वहाँ ले गई है। किसी ने तुम्हें याद तक नहीं किया। कोई तुम्हें जानता तक नहीं। फिर क्यों दिल छोटा करते हो। तुम्हारी तो कोई पहचान ही नहीं है इस जगत में, जिसके लिये तुम परेशान हो। कहीं दोस्तों के चढ़ाये पेड़ पर तो नहीं बैठे हो...? बालक, पहले इस लायक काम करो कि पहचान हासिल हो। बिना कुछ किये हल्ला मचाते हो, दुख होता है।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

Thursday, July 12, 2007

हे बालक, ब्लॉगवाणी वाले शाबास

बालक, यह बहुत अच्छा किया। आज तुमने कल मेरी लिखी बात को समझ कर मेरे सारे पत्र और ब्लॉग को फ़िर रजिस्टर कर लिया। साथ ही तुमने भड़ास को रजिस्टर कर एक अच्छा काम किया। शरीर के किसी हिस्से में कोढ़ हो जाये तो उसे काट कर फ़ेंक देना ठीक नहीं है। इसीलिये मैं कह रही थी भड़ास को साथ रहने दो।तुम क्यों अपना मन खराब करते हो।

अब लगा कि तुम नारद से अलग हो। बालक, मुझे तुम पर नाज़ है। मैं जानती थी कि तुम अपने भाई अफ़लातुन की बात में आ गये हो और तुमसे उसके आँसू देखे नहीं गये। बालक, बालमन अनुभवहीन होता है और उससे अक्सर गल्तियाँ हो जाती है। अच्छा बालक वो होता है जो बड़ों की बात सुनकर अपनी गल्ती मान ले और सुधार ले। बालक, तुमने अच्छे बालक होने का प्रमाण दिया है। मै तुमसे बहुत खुश हुँ।

आगे भी जब गल्ती करोगे, मैं तुम्हें बताती रहुँगी। बालक, मैं तुम्हें गलत राह पर जाते नहीं देख सकती। जब तुम कोई गलत काम करते हो, मुझे लगता है कि मै जुम्मेदार हुँ।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

हे बालक, क्या ब्लॉगवाणी भी तानाशाह नारद है...?

हे बालक ब्लोगवाणीधीश,

सुना था कि नारद की तानाशाही से तंग आकर तुमने ब्लॉगवाणी शुरु किया था। बालक, मैं बहुत खुश हो गई थी। आजकल तानाशाही ज्यादा दिन नहीं चलती। तुमने इसके खिलाफ़ मंच बनाया जबकि अन्य मंच भी आ चुके थे। चिट्ठा जगत, हिन्दी ब्लॉगस भी हैं। मैं तुम सब की बहादुरी से खूब खुश हो गई थी।

आज रात जब मैंने तुम्हारे भाई अफ़लातून को डांटा, तब तुम्हें मालूम ही नहीं चला। बालक, शायद तुम कहीं गये हुये थे। तुम्हारा ब्लॉगवाणी तो ऑटोमेटिक है, वो लग गया तुरंत दिखाने मेरी फ़टकार। बिल्कुल बालक अफ़लातून की रजिस्ट्रेशन वाली पोस्ट के नीचे। बेटा, मैं थोड़ी देर के लिये तुम्हारी चाची के साथ टहलने चली गई।

इस बीच तुम घर लौट आये और बालक अफ़लातून ने तुम्हें रो रो कर मेरी फ़टकार वाली बात बताई। तुम्हारा भाई प्रेम मातॄ प्रेम से ज्यादा उपर चला गया। आखिर उसने तुम्हारा प्रचार प्रसार भी खूब किया था। फ़िर तुमने न सिर्फ़ मेरी फ़टकार वाली पोस्ट अलग कर दी बल्कि पहले वाली पोस्टें भी हटा दी। बालक , इसे ही तो ब्लॉग बैन करना कहते हैं जिससे की तुम इतना तिलमिला गये थे कि क्या क्या न कर दिया।

बालक, अब तुम कैसे कहोगे कि तुम नारद नहीं हो। वो भी तो अपने भाई पर फ़टकार से तिलमिला गया था और एक ब्लॉग बैन कर गया था। वही काम आज तुमने किया।



बालक,

मैं देख रही हुँ कि यही तुम्हारा भाई अफ़लातून, राहूल ( पाण्डेय) बाजार का अतिक्रमण वाला, को बैन करने पर नारद के खिलाफ़ नारे लगा रहा था और कितने सारे भाई नारद को इसलिये छोड़ दिये कि वहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा नहीं. वहाँ बैन लगते हैं. आज वो राहूल भड़ास से लिखता है और उसे तुमने बैन कर रखा है जबकि चिट्ठाजगत उसे दिखाता है . बालक, यह सब लोग फ़िर तुम्हारे साथ क्यों जुड़ रहे हैं , वही आदमी तो यहाँ भी बैन है जिसके वज़ह से यह नारद पर धौस दिखाकर भागे थे. बालक , अब उन्हें चुप देखकर थोड़ा उनके दोगलेपन पर दुख होता है. पूछ कर बताना बालक उनसे कि वो तुमको कहीं इसलिये छोड़ने की धमकी नहीं दे पा रहे क्योंकि फ़िर जायेंगे कहाँ ...?

भड़ास तो हिन्दी ब्लॉग पर भी बैन है. वो लोग नाराज हों तो कहना कि माँ ने पूछा है . बालक, सेक्स क्या को भी तुम नारद की ही तरह नहीं दिखा रहे. मैं बहुत चकित हुँ कि जब तुम और नारद एक से हो , तो तुमने अलग से क्यों शुरु किया!!! अपनी उर्जा वहीं लगाते. कहीं कोई और छिपा उद्देश्य तो नहीं जो तुम लोगों को बता नहीं रहे हो. शायद कोई हिडन अजेंडा हो. ऐसे में इस तोडफोड के जुम्मेदार तुम कहलाओगे. कैसे सो पाओगे एक हरे भरे बाग में आग लगा कर.



बालक, मैने तुम्हें उस समय भी समझाया था कि इस जगत में कोई भी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं होता। जिसका किया काम है तुम जब उसको ही डांटोगे, गाली बकोगे, उसकी मन मर्जी के खिलाफ़ जाओगे, तो वह जरुर अपने सामर्थ के अनुरुप तुमको रोकेगा। तब तुम कहते थे कि यह तानाशाही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा का गला घोंटा जा रहा है। यह सार्वजनिक स्थल न हो कर व्यक्तिगत स्थल है। मुझे यहाँ नहीं रहना।

बालक, आज मैं तुमसे पूछती हुँ कि तुमने क्या किया ...? यह ठीक वही चीज नहीं है जो नारद ने की थी और फ़िर यहाँ पर तो गाली भी नहीं दी गई। बस एक माँ की अपने बिगडे बालक को फ़टकार थी।



तुम्हारी इच्छा है, चाहो तो गल्ती सुधार लो। मेरा दूसरा बालक, चिट्ठाजगत वाला तो इसे दिखा ही देगा। मुझे नहीं लगता कि अभी यह तानाशाही की आँधी वहाँ तक पहुँची है।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है !

Wednesday, July 11, 2007

हे बालक अफलातुन, यह क्या कर रहे हो?

हे बालक अफलातुन,

देख रही हुं तुम दिनों दिन सठियाते ही जा रहे हो!

बालक, इतनी तड़प अच्छी नहीं. और इतना घमंड भी अच्छा नहीं. मैं समझ नही पा रही कि तुम्हें किस चीज का मलाल है? पहले तुम अच्छा लिख कर हिन्दी ब्लोगिंग को चार चाँद लगाते थे, लेकिन जबसे राहुल को भक्त नारद के द्वार से बे दखल किया है, तुम्हारी मति भ्रष्ट हो गई है. अनाप शनाप छापे जा रहे हो.

बालक होश में आओ. देखो दूनिया में क्या रुका है क्या रुकेगा? जो आया है उसे जाना भी है. अपनी ऊर्जा, जो थोड़ी बहुत बची है, उसे सार्थक कामों में लगाओ.

तुम ये जो हाफ पेंट हाफ पेंट करते रहते हो ना बालक, वो भी ठीक नही है. किसी का मज़ाक उडाने से पहले खुद को देख लिया करो. आँख बंद करके सोच लिया करो कि क्या कर रहा हुं. और फिर क्यों किसी को उकसाते हो, उन्हे खुराक देते हो. इन महाक्तियों और नटराजीयों को उकसाकर क्या सिद्ध करना चाहते हो.

अरे इतना तो सोचो कि तुम कितने पानी में हो? अपनी पार्टी का हाल देखा ना यूपी चुनाव में! इतने आन्दोलन की डींगे हांकते हो, क्या हुआ? इतनी बडी विधानसभा में एक भी तुम्हारी पार्टी का उम्मीदवार नहीं? दो को ही खड़ा किया? वो भी हार गए (नटराज के सौजन्य से, महाशक्ति के चिट्ठे पर). यह क्या!

पहले अपनी जमीन सम्भालो बालक, फिर दूसरों पर छिंटाकसी करो. नारद के पीछे, जितेन्दर के पीछे, हाथ धो के पडे रहते हो. सोचो क्या मिलेगा इससे.

छोडो इन अविनाशों और संजयों को और अपना मन हरिकिर्तन में लगाओ अब.

या फिर उठो बालक, सामर्थ्य वान हो तो समाज के लिए सार्थक काम करो. ये किन पचडो में शरीर उमेठ रहे हो. लचक आ जाएगी और इस चक्कर में भक्त प्रमोद की पसंद का नीला कुर्ता ना फट जाए. फिर वो भी तुमको नही पुछेंगे.

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!

Tuesday, July 10, 2007

हे बालक, जय प्रकाश मानस

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

न्यूयार्क में ताली बजाने की क़ीमतः डेढ़ लाख रुपये

आज पढ़ रही थी कि तुम कहते हो कि न्यूयार्क में ताली बजाने की क़ीमतः डेढ़ लाख रुपये . काफी समझदार हो गये हो. अभी कुछ दिन पहले तुम लंदन में ताली बजा रहे थे, वो फ्री में बजा आये थे क्या? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बार फ्री में जाने का जुगाड़ नहीं हो पाया तो तुम खुंदक खा गये. वही या उससे मिलता जुलता आयोजन, जिसमें तुम भीड़ का हिस्सा बन कर पहुँच पाये वो सार्थक और जहाँ जुगाड़ नहीं हो पाया वो और उसकी सफलता संदेहास्पद और संदिग्ध.लगता है, तुम कहना चाह रहे हो कि तुम ही सफलता के आधार हो. बालक, क्या ऐसा सोचना अच्छी बात है?

चुटकुलेबाज कवि

न्यूयार्क में सम्मेलन के दौरान दैनिक कार्यवृति की रिपोर्टिंग चुटकुलेबाज कवि करने वाले हैं-तुम्हारी मेहरबानी इतनी है कि तुमने उन्हें कवि तो मान लिया. वरना कवि पहचनाने की तुम्हारी बुद्धि पर ही प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है.

अखिल भारतीय मंचीय कवि और उनकी युवती पीए

बालक, तुम कहते हो कि अखिल भारतीय मंचीय कवि के युवती पीए को सिर्फ इसलिए खर्च करके आयोजक ले जा रहे हैं कि वह डीटीपी कार्य जानती है और वह वहाँ अपने बॉस का हाथ बटायेगी । (ऐसा कार्य आपमें से और कोई जानते हों कृपया दुखी न होवें ।). तुम्हारा इशारा किस ओर है, सब समझ रहे हैं. सारा भारत उन्हें एक बेहतरीन कवि मानता है. हर मंच पर वही दिखते हैं, टीवी पर छाये रहते हैं. अगर तुम बेहतर हो तो तुमको लोग क्यूँ नहीं पहचान पा रहे हैं. क्या सारा भारत और विश्व में हिन्दी जानने वाले मूर्ख हैं? तुम तो बालक, समझाते समझाते खुद ही दुखी हो गये.

उनको जरुरत तो एक सामान उठाने वाले कुली की भी थी मगर तुम्हें पता ही नहीं चल पाया वरना तुम्हारी हालत देखते हुये मैं मान सकती हूँ कि तुम उसमें जरुर चले जाते. जिस तरह से तुम दुखी हो, तुम कुछ भी कर सकते थे. सुना है तुम अमरीका जाने की काफी दिन से तैयारी कर रहे थे. सारे साथियों को बता चुके थे, इसलिये और बुरा लगा कि अब क्या मुँह दिखाओगे.

भारतीय विदेश मंत्रालय

उन्हीं मंत्री जी के आगे पीछे तुम लंदन में घूमते रहे, फोटो खिचवाते रहे और अब वही तुम्हें बेकार लगने लगे और तुम कहने लगे कि भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से ऐसे कोई प्रयास ही किये ही नहीं गये. बालक, इस बार सबको १० साल का वीसा मिल गया है, यह तो तुम्हारे दुख को और बढ़ा रहा होगा? तुमको लंदन का कितने साल का वीसा मिला था? बस एक बार का. कितने दुख की बात है.

आथित्य सत्कार

बात तो आथित्य सत्कार की भी की है तुमने. बालक, हर सड़क चलते को तो घर में नहीं रुकवाया जा सकता, बहुत मंहगे मंहगे विदेशी सामान इन लोगों के घर में खुले रखे रहते हैं. क्या पता तुम कब मचल जाओ. जैसी आज तुम्हारी हालत है, वैसे ही उन सामानों को न प्राप्त कर पाने से दुखी हो तोड़ने फोड़ने लग जाओ, जैसा तुम अमरीका न जाने पर विश्व हिन्दी सम्मेलन के साथ कर रहे हो. बालक, समझने की कोशिश करो. जिनका एक स्तर है, उन्हें यह लोग अपने घरों पर ठहरा भी रहे हैं और पूरा सत्कार भी कर रहे हैं हमेशा से और इस बार भी. तुम ऐसे ही दुखी होकर हल्ला करते रहोगे तो सब तुमको जान जायेंगे. फिर आगे भी कभी अगर तुम जा पाये तो ठहराना तो दूर, मिलने से भी कतरायेंगे वहाँ के लोग. बालक, वो लोग बहुत शांति प्रिय होते हैं. बस यही तुम्हें समझाना चाहती हूँ.

ब्लॉगरों जैसे दो कोड़ी के लेखक

बालक, तुम इतना दुखी हुये कि तुमने सबको अपनी वाली ही श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. तुम ऐसा क्यूँ मानते हो कि ब्लॉगरों जैसे दो कोड़ी के लेखकों को कम से कम भारत सरकार के वेबसाइट में तवज्जो तो दिया गया। यह बात तुम्हारे लिये तो समझ में आती है कि तुम दो कौड़ी के लेखक हो मगर क्या सब ही ऐसे हैं. बालक, जब तुम उसे कवि मानने से मना कर सकते हो जिसे पूरा भारत देश, तुम्हारे जैसे दिमाग के आभाव में, कवि मानता है. उस समय उसकी कविताओं का मजा उठाता है, जब तुम कुढते रहते हो, तो तुम ऐसा कह रहे हो इसमें कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ.

अमरीका रिटर्न

बालक, थोड़ी बेईज्जती तो हुई है, थोड़ा तैयारी में खर्चा भी हुआ है तो भी इतना दुखी होना ठीक नहीं कि तुम सही गलत में भेद करना भूल जाओ और सब जाने वाले लेखकों को पंचम-षष्ठम श्रेणी के शौकिया लेखक कहने लग जाओ और कहो कि वो खुश क्यूँ न हो, जब उन्हें अमरीका रिटर्न कहलाने का मौका मिलेगा.

मैने देख रही थी जब तुम लंदन रिटर्न बन कर लौटे थे. कितने खुश थे तुम.

असुरी शक्तियों का नाश हो

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

आ गयी है, साक्षात माँ भवानी, असुरी शक्तियों का नाश करने। जल्द होगा प्रारम्भ, देखें कौन आता है चपैटे में। यमराज रहे तैयार।

Monday, July 9, 2007

सुधर जाओ भाई.

इन दिनों हिन्दी ब्लोगजगत में मचे घमासान को देखकर दु:ख हो रहा है... कुछ लोग जो मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं और जिन्हे इलाज की जरूरत है, वे लोग दुसरों के ब्लोगों पर जा जा कर उछल कूद मचाते रहते हैं. यह डॉ. सुभाष भदौरिया जी को तो सचमूच ईलाज की जरूरत है.