Monday, August 27, 2007

हे भड़ासीओं, भदौरिया,निलिमा, प्रतयक्षा और शिल्पा-माँ का संदेश

हे भड़ासीओं, गालियां बकना तुम्हें अच्छा लगता है। बकते रहो। माँ को एतराज नहीं है। वो बस दुख मना सकती है। पूरे शहर में, समाज में हर जगह तो सुनाई पड़ती है गालियां। माँ किस किस को रोकेगी। तुम भी बको, कोई बात नहीं। गाली समाज में बकी जाती है, कौन सा वर्ग बकता है, तुम वाकिफ हो।अच्छा लगता है तो बको।

मगर एक पागल, जो समस्त नारी वर्ग पर अपनी गन्दी भाषा में अपनी कुंठा निकाल रहा है, उसको तुम कहते हो वो इमानदार है और जो देखता है, सोचता है, वो लिखता है। इस पर क्या आपत्ति।

हे बालक, समाज में रहने के अपने नियम होते हैं। तुम मानव हो, जानवर नहीं। इसीलिये तो जब अपनी बीबी के साथ रति क्रिया में संल्गन होते हो, तो किवाड़ लगा लेते हो। ऐसी ही इमानदारी तब क्यूँ नहीं बरतते और अपने बच्चों और मां बाप के सामने ही शुरु हो जाओ। तमाम मोहल्ल्रा वालों के सामने खुद तो खुद, अपनी बीबी को नग्नावस्था में स्नान करने कुंए पर भेजो। क्या उस समय भी कह पाओगे कि हम इमानदार हैं इसलिये ऐसा कर रहे हैं। नहीं न? बहरहाल, यह समाज ने नियम बनाये हैं जिसके तहत तुम किवाड़ की ओट लेते हो और यह अच्छी बात है। वरना तुममें और जानवरों में क्या अंतर रह जायेगा।

हे बालक, तुम मे से कोई कहता है कि वो पागल और बद दिमाग भदौरिया अपने बेडरुम में कुछ करे इससे किसी को क्या करना है। सही कह रहा है। किसी को कुछ नहीं करना। मगर जब तक वो इसे बेडरुम में करे। तमाम पब्लिक ब्लाग बेडरुम नहीं है मतलब निजी जगह। डायरी में लिख कर घर में रख लेता तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी। बहरहाल ब्लाग पब्लिक स्पेस में तुमको दिया गया वह स्थान है जहाँ तुम अपने विचार लोगों से जुम्मेदारी से बांट सको। तो यहां तो तुम्हें तमाम समाज का ख्याल करना होगा। जैसे तुम अपनी बीबी के साथ करते हो या नहाते समय करते हो।

जरा सोचना, बालक। मां हूं न चिन्ता होती है।

हे भदोरिया, पिछली सारी डांटें भूल गया क्या, बालक। उस पर से लब्बो लुआब ये कि तु कहता घुमता है कि मुझे भगा दिया। अब तक मैं यह सोच कर लिहाज कर रही हूं कि तु खुद सुधर च फुदर जायेगा। मगर तु तो मानता नहीं है। क्या तमाम लोगों सामने तेरा और तेरे परिवार का कच्चा हिसाब रख दुं। मुंह दिखा पायेगा फिर तु। बहरहाल, जरा सोचना। यह सब किताबों के नाम तु लेता है और उससे अपनी परोसी गंदगी को छिपाने की कोशिस करता है। जिन लेखकों के नाम तु ले रहा है। उनके घर काम करने वाले नौकरों की भाषा और सोच भी तुझ तुच्छ और पागल आदमी से बेहतर है। उनकी तो तु बात मत कर। मैं सब लोगों को तेरे केसेस और किस्से बताना नहीं चाहती वरना कालिज और मुह्ह्ले की तरह तु यहां भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा।

बस, सोच ले। मां हूं न,चिन्ता होती है।

हे निलिमा, प्रतयक्षा और शिल्पा- तुम तीनों नारी के सम्मान को लिये सुकुल फुरसतिया और ज्ञान दत्त की पोस्टों पर खुब हल्ला मचा रही थी। तमाम तरह तरह के लेख लिख रही थी। आज क्या हुआ। पागल से डर कर चुप क्यों हो गई या भदौरिया ने जो कहा वो नारी जाति का अपमान नही है मगर कार को टक्कर मार देना जिसे महिला चलाती हो या बीबी का पति को समर्थन देने का मजाक कर लेना नारी का ज्यादा बडा अपमान था। मुझे लगता है बालिकाओं, तुम भी उन्हीं पर हमला करती हो जिनको तुम जानती हो कि वो तुम्हारा हमला सीधे से सह जायेगा वरना तो इस भदोरिया के खिलाफ अब तक तुम्हारी दस पांच पोस्ट आ जाना चाहिये थी और तुम्हें सुकुल और ज्ञानदत्त की पुलक इससे बेहतर लगने लगती और इस बार तुम जुम्मेदार नारी की तरह उनसे समर्थन की मांग लगाती। तुमको नारद की मोरनी कहने वाला भदौरिया आज अपनी औकात पर उतर आया है। यह कैसा नारी सम्मान को बचाने का भाव तुम्हारे मन में है।

जरा सोचना बालिकाओं, मां हुं चिन्ता होती है।

हे बालक कमलेश और बालिका रचना_ तुम दोनों सही का साथ दे रहे हो। जो सही है वही सही रहेगा। मां का आशीस तुम्हारे साथ है। पीछे मत हटना।

मां तुमसे खुश है।