Tuesday, September 9, 2008

हे बालक समीर लाल उडन तस्तरी वाले, तु तो ऐसा नहीं था

तुझे क्या हुआ बेटा? तु तो सबको समझाने वाला मेरा बेटा था| तु सबका हौसला बढाता और सब कितने प्यार से तुझे सुनते है|

फिर एकाएक तुझे क्या हुआ| मुझे तो घबडाहट होती जा रही है|

जो भी हुआ हो| कभी कुछ बुरा लगा हो मगर फिर भी इतना बडा परिवार तुझको वापस बुलाने का अनुरोध कर रहा है तो वापिस क्यों नहीं आ जाता|

बहरहाल, जिसने भी तुझको दुखी किया, कौन जुम्मेवार है, मुझको नाम बता| मैं फटकार लगाउंगी न उसको|

लब्बोलुआब यह कि बस तु न जा|वापस आ जा|मां कह रही है|

आज तो तेरे गजल के मास्टर पंकज बेटा और तेरी बहन विनिता भी कदाचित तुझे बुलाने अलग से आवाज लगा गये, फिर भी तु चुप बैठा है| क्या तुझमे अहंकार आ गया है या अपनी इस बुडी मां से भी अनुरोध करवायेगा|

अच्छा बच्चा है न तु मेरा, अब वापस आ जा|

मां हूं न बेटा| तुझे दुखी देख नहीं सकती|

बहुत दुखी हूं -एक मां हूं न!