Tuesday, September 9, 2008

हे बालक समीर लाल उडन तस्तरी वाले, तु तो ऐसा नहीं था

तुझे क्या हुआ बेटा? तु तो सबको समझाने वाला मेरा बेटा था| तु सबका हौसला बढाता और सब कितने प्यार से तुझे सुनते है|

फिर एकाएक तुझे क्या हुआ| मुझे तो घबडाहट होती जा रही है|

जो भी हुआ हो| कभी कुछ बुरा लगा हो मगर फिर भी इतना बडा परिवार तुझको वापस बुलाने का अनुरोध कर रहा है तो वापिस क्यों नहीं आ जाता|

बहरहाल, जिसने भी तुझको दुखी किया, कौन जुम्मेवार है, मुझको नाम बता| मैं फटकार लगाउंगी न उसको|

लब्बोलुआब यह कि बस तु न जा|वापस आ जा|मां कह रही है|

आज तो तेरे गजल के मास्टर पंकज बेटा और तेरी बहन विनिता भी कदाचित तुझे बुलाने अलग से आवाज लगा गये, फिर भी तु चुप बैठा है| क्या तुझमे अहंकार आ गया है या अपनी इस बुडी मां से भी अनुरोध करवायेगा|

अच्छा बच्चा है न तु मेरा, अब वापस आ जा|

मां हूं न बेटा| तुझे दुखी देख नहीं सकती|

बहुत दुखी हूं -एक मां हूं न!

Thursday, July 10, 2008

मां ने अपने नालायक पुत्र सुभाष भदौरिया से संबंध तोडा

पूरे ब्लोगजगत को सूचित करती हूं कि मैं अपने नालायक, बेवकूफ और शराबी पुत्र सुभाष भदौरिया से पूर्ण संबंध खतम करती हूँ। मुझे उम्मीद थी कि इतनी बार फटकार लगाने के बाद और कन्टाप मारने के बार वो मुरख सुधर जायेगा मगर शराब पीकर वो फिर फिर से सबको बदनाम करने अनाप शनाप लिखता है और यदि कोई भला सीधा आदमी उसको समझाने जाये तो उस पर भी हमला करता है।एकाध वाकया होता तो भी चल जाता मगर इसकी इस तरह की घटनायें बहुत् आम हो गयी हैं। इसके लफ़ड़े से परेशान होकर मैने यह कडा निर्णय लिया है।

आप सब भी उससे कोई संबंध न रखें। वो जगह जगह से लोगों की फोटो चुराता है और उन पर उलाहना भरी गन्दी गजलें लिखता है। मेरे ज्येष्ट पुत्र सम्मानीय ब्लोगर ज्ञान दत्ता पाण्डेय के साथ और रवी रतलामी बेटे के साथ भी आज उसने यही किया है। कल उसने प्रिय पुत्र उडनतस्तरी के लिये लिखा था जिसे प्रिय पुत्र उडनतस्तरी ने अपने स्वभाव के कारन मजाक मे टाल दिया था। वो मुंह लगाने लायक आदमी नहीं है। उसकी रिपोट उसके कालिज से भी अच्छी नहीं है और वो वहां भी अपनी हरकतो की वजह से बदनाम है। नौकरी किसी तरह लोगों का पैर पकड कर बची है, बहरहाल परमोशन तो होता ही नहीं।

जहां भी दिखे, कदाचित अपना रास्ता बदल लो वरना आप खुद से जुम्मेवार होगे।लब्बो-लुआब यह कि संगठन में शक्ति है। आप सब मिलकर इसका विरोध करें।

बेटे से संबंध खतम करना किसी मां के लिये कितना दुखी समय है मगर क्या करुं, करना पड़ रहा है।

बहुत दुखी हूं -एक मां हूं न!

Sunday, May 18, 2008

बालक पंकज अवधिया, झूठ तो न बोल!!

देख बेटा तेरा कितना मान है ज्ञान दत्त जी जैसे आदमी तुझे अपने ब्लॉग पर जगह देते हैं और तू है कि झूठ बोलने से बाज नहीं आता।. उन जैसे को बदनाम न कर.

आज तूने लिखा कि तू ६ घंटे में १००० पन्ने में टाईप कर रहा है। हद है, तेरा नाम गिनस बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड मे नही आया।

World Records in Typing

TEST RESULT TYPIST MACHINE YEAR

1 hr 147 wpm Albert Tangora Underwood Standard 1923

1 hr 149 wpm Margaret Hamma electric typewriter 1941

1 min 216 wrds Stella Pajunas IBM machine 1946

5 min 176 wpm Carole Bechen manual typewriter 1959

3 min 158 wpm Gregory Arakelian personal computer 1991

???? 192 wpm Natalie Lantos** PC 1998



** Natalie set the World Record while a student at the
CompuCollege School of Business (Vancouver, BC )



Guinness Book of World Records, 1998 edition.

६ घंटे में १००० पन्ने मतलब कि १६७ पन्ने एक घंटे में मतलब कि २.७८ पन्ने एक मिनट में। एक पन्ने में औसतन कम से कम दूर दूर लिखे ३०० शब्द या पास पास लिखे ३५० शब्द। मतलब तुम्हारे हिसाब से ८३४ शब्द हर मिनट। मतलब कि आज के विश्व रिकार्ड से लगभग ४ गुना ज्यादा। आज का विश्व रिकार्ड है २१६ शब्द हर मिनट में।

जरा संपर्क करो इन विश्व रिकार्ड वालों से या फिर अपने कथ्य की गलती सुधारो। लगता है बेटा कि तुम एक शून्य ज्यादा लगा गये हो। कहीं तुम १०० पन्ने ६ घंटे में कहना तो नहीं चाहते थे??

बता न बेटे!!

माँ हूँ न, चिन्ता होती है।

Thursday, May 8, 2008

हे बालक ब्लागवाणी BLOGVANI वाले-क्यों नाराज है तु?

बेटा, तु तो मेरा अच्छा बेटा है फिर क्या हुआ? किस बात पर मां से ही गुस्सा हो गया?

बता न बेटा, अपनी मां को भी नही बतायेगा?

मै तेरी मां बूढ्ढी हो गई तो बोझ लगने लगी और घर से ही निकाल दिया|

कल मोहिन्दर बेटे को फटकारा तो नारद और चिट्टाजगत दोनों ने खुसी खुसी मुझे सर आंखो पर बैठाला पर तुने तो मुझे दीखाया भी नही| मोहिन्दर को डांटना जरुरी हो गया था बेटा। वो पुरुस्कार पुरुस्कार की पागलों की तरह रट लगाता था। पहली बार और वो भी भुल से मिला है न उसे, इसलिये। तु तो खुद भी मन मन उसको डांटता होगा कि कैसा पागल की तरह नाच कर रहा है। तु तो उसका बडा है, उसके कान खिचना चाहिये तुझे।

किस बात से मां से नाराज हो गया, बेटा तु|

जानती हूं कि सब तुझे बहुत परेसान कर रहे है| हर बात के लिये तुझको जुम्मेवार ठहराते है और तेरा इतना करने पर भी लब्बोलुआब ये कि अहसान भी नही मानते| तु थक जाता होगा| परेसान हो जाता होगा| मगर मां से नाराज क्यों होता है रे? मां तो सहारा ही देती है| सर पर हाथ फेर देगी तो सब दुख ओर परेसानी जाती च फाती रहेगी|

बहरहाल, आशा करती हूं अब से कदाचित तु मां की पोस्ट दीखाया करेगा| मां तो बच्चों को सुधारने के लिये ही डांटती है|

बच्चे बिगडते हैं तो खराब लगता है| इसीलिये गुस्सा खा जाती हूं।

मां हूं न! दुख होता है|

Tuesday, May 6, 2008

हे बालक मोहिन्दर कुमार –क्यों रोता है रे तु?

बेटा मोहिन्दर , मै जानती हूं कि तु सारा जीवन कुछ का कुछ लिखता रहा। तु उनको कवीता कहता था बचपन से अब तक। मुझको तो समझ न है, कौन जाणे क्या है। पर तेरे दोस्त और रिस्तेवाले सब बाद मे तेरे पीछे हंसते थे तो मुझे अच्छा न लगता था। मां हुं न।

मै सोचती कि अभी डाटूंगी और जरुरत पडी तो चांटा भी लगा दुंगी। पर कभी कुच कहा नही और तु अपनी टुट्फुट लीखता गया।

सारा जीवन गुजर गया बेटा तेरा। उमर पचास पार हो गई। तब बडी मेहनत करके, सही झूट हर तरह के वोट डलवा कर , अगडम च बगडम पहला सम्मान तरकश सम्मान जुगाडा और वो भी नही मिल रहा:रोना तो आयेगा पर तेरे को नाम ही घोसित होने पर खुस हो जाना चाहिजे। पहली बार हुआ है तेरे जीवन मे। है कि नही : जब कि तेरा नाम घोसित हुआ हो।

कवीता पढकर मिलणा होता त्ब तु तो लाइन में सबसे पीछे खडा मार खा रहा होता। बहरहाल लपडेबाजी से मिला तब क्यों रोता है। उपर से लब्बोलुआब ये की सिकायत लगाता है। न जाणे कौण कौण को जुम्मेदार ठ्हराता है. तेणे सरम न आवे कि कल को झुट न पकडवा दे कोइ।

बेटा, अब जो गलत वाला पत्र आ गया है ओई को राख ले। कही वो भी वापस न ले लें तरकस वाले।

कौण जाणे है रे तुझे: मोहिन्दर कुमार की मोहिन्दर सिंह । तेणे ही तो देखणा है इसे और तो कोइ देख्खे हि कोणी।

कीतणी जग हसाई करायेगा रे बेटा तु अपणी और मेरी।

मां हुं न, चिन्ता होती है।

Wednesday, September 5, 2007

हे बालक सुभाष भदौरिया, बहुत खुश होगे तुम

हे बालक, आज तो तेरी खुशी का टिकाना नही होगा। तमाम हिन्दी के ब्लागरों के बीच तो पहला ब्लागर बन गया है, जिसकी अश्लीलता पर अंग्रजी कम्पनी याहू ने शर्मसार हो पोस्ट ही बैन कर दी। बहरहाल, तेरा नाम हिन्दी ब्लागींग के इतिहास में एसे पहले ब्लागर की हैसियत से काले रंग मे लीख गया है, जिसे तु क्या तेरी आने वाली पुस्ते भी नही मिटा पायेंगी। लोग जब सुनेंगे तब मुंह बनायेंगे बिगडे जायके सा।

जब भी किसी पोस्ट को अश्लीलता के लिये हटाये जाने की मांग होगी, तेरी भद्दगी का जिकर जरुर होगा। तमाम ब्लागर हमेशा तुझे याद करेंगे इस गन्दगी के लिये। जा देख सपने औरतो के और लिख उसे अपनी गंदी भाशा मे।

बहरहाल, तु क्या करेगा? अब याहु को गालियां बकेगा। बक, तुझे सुनता कौन है?

तेरा क्या है, तु तो अपने पोस्ट पर और फिर अपने दोस्तों मे जाकर कहने लगेगा, नारद ने याहु को पाल रखा है। वो नारद का आदमी है। नारद इसके लिये जुम्मेदार है। गोली चलाओ और मसाल जलाओ और जाने क्या क्या।

हे बालक, तु जब इस तरह की फालतू बात करता है तो बाद में क्या अपना नाम लिखकर उसी पर थूकता है ? घ्रीणा तो होती होगी।

तेरी इतनी बेज्जती हुई है, जिनको न मालुम चला हो वो भी जान जायेंगे। इस करके सोचा कि तुझे लिखुं।

मां हुं न, चिन्ता होती है।

Monday, August 27, 2007

हे भड़ासीओं, भदौरिया,निलिमा, प्रतयक्षा और शिल्पा-माँ का संदेश

हे भड़ासीओं, गालियां बकना तुम्हें अच्छा लगता है। बकते रहो। माँ को एतराज नहीं है। वो बस दुख मना सकती है। पूरे शहर में, समाज में हर जगह तो सुनाई पड़ती है गालियां। माँ किस किस को रोकेगी। तुम भी बको, कोई बात नहीं। गाली समाज में बकी जाती है, कौन सा वर्ग बकता है, तुम वाकिफ हो।अच्छा लगता है तो बको।

मगर एक पागल, जो समस्त नारी वर्ग पर अपनी गन्दी भाषा में अपनी कुंठा निकाल रहा है, उसको तुम कहते हो वो इमानदार है और जो देखता है, सोचता है, वो लिखता है। इस पर क्या आपत्ति।

हे बालक, समाज में रहने के अपने नियम होते हैं। तुम मानव हो, जानवर नहीं। इसीलिये तो जब अपनी बीबी के साथ रति क्रिया में संल्गन होते हो, तो किवाड़ लगा लेते हो। ऐसी ही इमानदारी तब क्यूँ नहीं बरतते और अपने बच्चों और मां बाप के सामने ही शुरु हो जाओ। तमाम मोहल्ल्रा वालों के सामने खुद तो खुद, अपनी बीबी को नग्नावस्था में स्नान करने कुंए पर भेजो। क्या उस समय भी कह पाओगे कि हम इमानदार हैं इसलिये ऐसा कर रहे हैं। नहीं न? बहरहाल, यह समाज ने नियम बनाये हैं जिसके तहत तुम किवाड़ की ओट लेते हो और यह अच्छी बात है। वरना तुममें और जानवरों में क्या अंतर रह जायेगा।

हे बालक, तुम मे से कोई कहता है कि वो पागल और बद दिमाग भदौरिया अपने बेडरुम में कुछ करे इससे किसी को क्या करना है। सही कह रहा है। किसी को कुछ नहीं करना। मगर जब तक वो इसे बेडरुम में करे। तमाम पब्लिक ब्लाग बेडरुम नहीं है मतलब निजी जगह। डायरी में लिख कर घर में रख लेता तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी। बहरहाल ब्लाग पब्लिक स्पेस में तुमको दिया गया वह स्थान है जहाँ तुम अपने विचार लोगों से जुम्मेदारी से बांट सको। तो यहां तो तुम्हें तमाम समाज का ख्याल करना होगा। जैसे तुम अपनी बीबी के साथ करते हो या नहाते समय करते हो।

जरा सोचना, बालक। मां हूं न चिन्ता होती है।

हे भदोरिया, पिछली सारी डांटें भूल गया क्या, बालक। उस पर से लब्बो लुआब ये कि तु कहता घुमता है कि मुझे भगा दिया। अब तक मैं यह सोच कर लिहाज कर रही हूं कि तु खुद सुधर च फुदर जायेगा। मगर तु तो मानता नहीं है। क्या तमाम लोगों सामने तेरा और तेरे परिवार का कच्चा हिसाब रख दुं। मुंह दिखा पायेगा फिर तु। बहरहाल, जरा सोचना। यह सब किताबों के नाम तु लेता है और उससे अपनी परोसी गंदगी को छिपाने की कोशिस करता है। जिन लेखकों के नाम तु ले रहा है। उनके घर काम करने वाले नौकरों की भाषा और सोच भी तुझ तुच्छ और पागल आदमी से बेहतर है। उनकी तो तु बात मत कर। मैं सब लोगों को तेरे केसेस और किस्से बताना नहीं चाहती वरना कालिज और मुह्ह्ले की तरह तु यहां भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा।

बस, सोच ले। मां हूं न,चिन्ता होती है।

हे निलिमा, प्रतयक्षा और शिल्पा- तुम तीनों नारी के सम्मान को लिये सुकुल फुरसतिया और ज्ञान दत्त की पोस्टों पर खुब हल्ला मचा रही थी। तमाम तरह तरह के लेख लिख रही थी। आज क्या हुआ। पागल से डर कर चुप क्यों हो गई या भदौरिया ने जो कहा वो नारी जाति का अपमान नही है मगर कार को टक्कर मार देना जिसे महिला चलाती हो या बीबी का पति को समर्थन देने का मजाक कर लेना नारी का ज्यादा बडा अपमान था। मुझे लगता है बालिकाओं, तुम भी उन्हीं पर हमला करती हो जिनको तुम जानती हो कि वो तुम्हारा हमला सीधे से सह जायेगा वरना तो इस भदोरिया के खिलाफ अब तक तुम्हारी दस पांच पोस्ट आ जाना चाहिये थी और तुम्हें सुकुल और ज्ञानदत्त की पुलक इससे बेहतर लगने लगती और इस बार तुम जुम्मेदार नारी की तरह उनसे समर्थन की मांग लगाती। तुमको नारद की मोरनी कहने वाला भदौरिया आज अपनी औकात पर उतर आया है। यह कैसा नारी सम्मान को बचाने का भाव तुम्हारे मन में है।

जरा सोचना बालिकाओं, मां हुं चिन्ता होती है।

हे बालक कमलेश और बालिका रचना_ तुम दोनों सही का साथ दे रहे हो। जो सही है वही सही रहेगा। मां का आशीस तुम्हारे साथ है। पीछे मत हटना।

मां तुमसे खुश है।