Tuesday, May 6, 2008

हे बालक मोहिन्दर कुमार –क्यों रोता है रे तु?

बेटा मोहिन्दर , मै जानती हूं कि तु सारा जीवन कुछ का कुछ लिखता रहा। तु उनको कवीता कहता था बचपन से अब तक। मुझको तो समझ न है, कौन जाणे क्या है। पर तेरे दोस्त और रिस्तेवाले सब बाद मे तेरे पीछे हंसते थे तो मुझे अच्छा न लगता था। मां हुं न।

मै सोचती कि अभी डाटूंगी और जरुरत पडी तो चांटा भी लगा दुंगी। पर कभी कुच कहा नही और तु अपनी टुट्फुट लीखता गया।

सारा जीवन गुजर गया बेटा तेरा। उमर पचास पार हो गई। तब बडी मेहनत करके, सही झूट हर तरह के वोट डलवा कर , अगडम च बगडम पहला सम्मान तरकश सम्मान जुगाडा और वो भी नही मिल रहा:रोना तो आयेगा पर तेरे को नाम ही घोसित होने पर खुस हो जाना चाहिजे। पहली बार हुआ है तेरे जीवन मे। है कि नही : जब कि तेरा नाम घोसित हुआ हो।

कवीता पढकर मिलणा होता त्ब तु तो लाइन में सबसे पीछे खडा मार खा रहा होता। बहरहाल लपडेबाजी से मिला तब क्यों रोता है। उपर से लब्बोलुआब ये की सिकायत लगाता है। न जाणे कौण कौण को जुम्मेदार ठ्हराता है. तेणे सरम न आवे कि कल को झुट न पकडवा दे कोइ।

बेटा, अब जो गलत वाला पत्र आ गया है ओई को राख ले। कही वो भी वापस न ले लें तरकस वाले।

कौण जाणे है रे तुझे: मोहिन्दर कुमार की मोहिन्दर सिंह । तेणे ही तो देखणा है इसे और तो कोइ देख्खे हि कोणी।

कीतणी जग हसाई करायेगा रे बेटा तु अपणी और मेरी।

मां हुं न, चिन्ता होती है।