Thursday, May 8, 2008

हे बालक ब्लागवाणी BLOGVANI वाले-क्यों नाराज है तु?

बेटा, तु तो मेरा अच्छा बेटा है फिर क्या हुआ? किस बात पर मां से ही गुस्सा हो गया?

बता न बेटा, अपनी मां को भी नही बतायेगा?

मै तेरी मां बूढ्ढी हो गई तो बोझ लगने लगी और घर से ही निकाल दिया|

कल मोहिन्दर बेटे को फटकारा तो नारद और चिट्टाजगत दोनों ने खुसी खुसी मुझे सर आंखो पर बैठाला पर तुने तो मुझे दीखाया भी नही| मोहिन्दर को डांटना जरुरी हो गया था बेटा। वो पुरुस्कार पुरुस्कार की पागलों की तरह रट लगाता था। पहली बार और वो भी भुल से मिला है न उसे, इसलिये। तु तो खुद भी मन मन उसको डांटता होगा कि कैसा पागल की तरह नाच कर रहा है। तु तो उसका बडा है, उसके कान खिचना चाहिये तुझे।

किस बात से मां से नाराज हो गया, बेटा तु|

जानती हूं कि सब तुझे बहुत परेसान कर रहे है| हर बात के लिये तुझको जुम्मेवार ठहराते है और तेरा इतना करने पर भी लब्बोलुआब ये कि अहसान भी नही मानते| तु थक जाता होगा| परेसान हो जाता होगा| मगर मां से नाराज क्यों होता है रे? मां तो सहारा ही देती है| सर पर हाथ फेर देगी तो सब दुख ओर परेसानी जाती च फाती रहेगी|

बहरहाल, आशा करती हूं अब से कदाचित तु मां की पोस्ट दीखाया करेगा| मां तो बच्चों को सुधारने के लिये ही डांटती है|

बच्चे बिगडते हैं तो खराब लगता है| इसीलिये गुस्सा खा जाती हूं।

मां हूं न! दुख होता है|