Sunday, May 18, 2008

बालक पंकज अवधिया, झूठ तो न बोल!!

देख बेटा तेरा कितना मान है ज्ञान दत्त जी जैसे आदमी तुझे अपने ब्लॉग पर जगह देते हैं और तू है कि झूठ बोलने से बाज नहीं आता।. उन जैसे को बदनाम न कर.

आज तूने लिखा कि तू ६ घंटे में १००० पन्ने में टाईप कर रहा है। हद है, तेरा नाम गिनस बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड मे नही आया।

World Records in Typing

TEST RESULT TYPIST MACHINE YEAR

1 hr 147 wpm Albert Tangora Underwood Standard 1923

1 hr 149 wpm Margaret Hamma electric typewriter 1941

1 min 216 wrds Stella Pajunas IBM machine 1946

5 min 176 wpm Carole Bechen manual typewriter 1959

3 min 158 wpm Gregory Arakelian personal computer 1991

???? 192 wpm Natalie Lantos** PC 1998



** Natalie set the World Record while a student at the
CompuCollege School of Business (Vancouver, BC )



Guinness Book of World Records, 1998 edition.

६ घंटे में १००० पन्ने मतलब कि १६७ पन्ने एक घंटे में मतलब कि २.७८ पन्ने एक मिनट में। एक पन्ने में औसतन कम से कम दूर दूर लिखे ३०० शब्द या पास पास लिखे ३५० शब्द। मतलब तुम्हारे हिसाब से ८३४ शब्द हर मिनट। मतलब कि आज के विश्व रिकार्ड से लगभग ४ गुना ज्यादा। आज का विश्व रिकार्ड है २१६ शब्द हर मिनट में।

जरा संपर्क करो इन विश्व रिकार्ड वालों से या फिर अपने कथ्य की गलती सुधारो। लगता है बेटा कि तुम एक शून्य ज्यादा लगा गये हो। कहीं तुम १०० पन्ने ६ घंटे में कहना तो नहीं चाहते थे??

बता न बेटे!!

माँ हूँ न, चिन्ता होती है।

Thursday, May 8, 2008

हे बालक ब्लागवाणी BLOGVANI वाले-क्यों नाराज है तु?

बेटा, तु तो मेरा अच्छा बेटा है फिर क्या हुआ? किस बात पर मां से ही गुस्सा हो गया?

बता न बेटा, अपनी मां को भी नही बतायेगा?

मै तेरी मां बूढ्ढी हो गई तो बोझ लगने लगी और घर से ही निकाल दिया|

कल मोहिन्दर बेटे को फटकारा तो नारद और चिट्टाजगत दोनों ने खुसी खुसी मुझे सर आंखो पर बैठाला पर तुने तो मुझे दीखाया भी नही| मोहिन्दर को डांटना जरुरी हो गया था बेटा। वो पुरुस्कार पुरुस्कार की पागलों की तरह रट लगाता था। पहली बार और वो भी भुल से मिला है न उसे, इसलिये। तु तो खुद भी मन मन उसको डांटता होगा कि कैसा पागल की तरह नाच कर रहा है। तु तो उसका बडा है, उसके कान खिचना चाहिये तुझे।

किस बात से मां से नाराज हो गया, बेटा तु|

जानती हूं कि सब तुझे बहुत परेसान कर रहे है| हर बात के लिये तुझको जुम्मेवार ठहराते है और तेरा इतना करने पर भी लब्बोलुआब ये कि अहसान भी नही मानते| तु थक जाता होगा| परेसान हो जाता होगा| मगर मां से नाराज क्यों होता है रे? मां तो सहारा ही देती है| सर पर हाथ फेर देगी तो सब दुख ओर परेसानी जाती च फाती रहेगी|

बहरहाल, आशा करती हूं अब से कदाचित तु मां की पोस्ट दीखाया करेगा| मां तो बच्चों को सुधारने के लिये ही डांटती है|

बच्चे बिगडते हैं तो खराब लगता है| इसीलिये गुस्सा खा जाती हूं।

मां हूं न! दुख होता है|

Tuesday, May 6, 2008

हे बालक मोहिन्दर कुमार –क्यों रोता है रे तु?

बेटा मोहिन्दर , मै जानती हूं कि तु सारा जीवन कुछ का कुछ लिखता रहा। तु उनको कवीता कहता था बचपन से अब तक। मुझको तो समझ न है, कौन जाणे क्या है। पर तेरे दोस्त और रिस्तेवाले सब बाद मे तेरे पीछे हंसते थे तो मुझे अच्छा न लगता था। मां हुं न।

मै सोचती कि अभी डाटूंगी और जरुरत पडी तो चांटा भी लगा दुंगी। पर कभी कुच कहा नही और तु अपनी टुट्फुट लीखता गया।

सारा जीवन गुजर गया बेटा तेरा। उमर पचास पार हो गई। तब बडी मेहनत करके, सही झूट हर तरह के वोट डलवा कर , अगडम च बगडम पहला सम्मान तरकश सम्मान जुगाडा और वो भी नही मिल रहा:रोना तो आयेगा पर तेरे को नाम ही घोसित होने पर खुस हो जाना चाहिजे। पहली बार हुआ है तेरे जीवन मे। है कि नही : जब कि तेरा नाम घोसित हुआ हो।

कवीता पढकर मिलणा होता त्ब तु तो लाइन में सबसे पीछे खडा मार खा रहा होता। बहरहाल लपडेबाजी से मिला तब क्यों रोता है। उपर से लब्बोलुआब ये की सिकायत लगाता है। न जाणे कौण कौण को जुम्मेदार ठ्हराता है. तेणे सरम न आवे कि कल को झुट न पकडवा दे कोइ।

बेटा, अब जो गलत वाला पत्र आ गया है ओई को राख ले। कही वो भी वापस न ले लें तरकस वाले।

कौण जाणे है रे तुझे: मोहिन्दर कुमार की मोहिन्दर सिंह । तेणे ही तो देखणा है इसे और तो कोइ देख्खे हि कोणी।

कीतणी जग हसाई करायेगा रे बेटा तु अपणी और मेरी।

मां हुं न, चिन्ता होती है।