Wednesday, July 11, 2007

हे बालक अफलातुन, यह क्या कर रहे हो?

हे बालक अफलातुन,

देख रही हुं तुम दिनों दिन सठियाते ही जा रहे हो!

बालक, इतनी तड़प अच्छी नहीं. और इतना घमंड भी अच्छा नहीं. मैं समझ नही पा रही कि तुम्हें किस चीज का मलाल है? पहले तुम अच्छा लिख कर हिन्दी ब्लोगिंग को चार चाँद लगाते थे, लेकिन जबसे राहुल को भक्त नारद के द्वार से बे दखल किया है, तुम्हारी मति भ्रष्ट हो गई है. अनाप शनाप छापे जा रहे हो.

बालक होश में आओ. देखो दूनिया में क्या रुका है क्या रुकेगा? जो आया है उसे जाना भी है. अपनी ऊर्जा, जो थोड़ी बहुत बची है, उसे सार्थक कामों में लगाओ.

तुम ये जो हाफ पेंट हाफ पेंट करते रहते हो ना बालक, वो भी ठीक नही है. किसी का मज़ाक उडाने से पहले खुद को देख लिया करो. आँख बंद करके सोच लिया करो कि क्या कर रहा हुं. और फिर क्यों किसी को उकसाते हो, उन्हे खुराक देते हो. इन महाक्तियों और नटराजीयों को उकसाकर क्या सिद्ध करना चाहते हो.

अरे इतना तो सोचो कि तुम कितने पानी में हो? अपनी पार्टी का हाल देखा ना यूपी चुनाव में! इतने आन्दोलन की डींगे हांकते हो, क्या हुआ? इतनी बडी विधानसभा में एक भी तुम्हारी पार्टी का उम्मीदवार नहीं? दो को ही खड़ा किया? वो भी हार गए (नटराज के सौजन्य से, महाशक्ति के चिट्ठे पर). यह क्या!

पहले अपनी जमीन सम्भालो बालक, फिर दूसरों पर छिंटाकसी करो. नारद के पीछे, जितेन्दर के पीछे, हाथ धो के पडे रहते हो. सोचो क्या मिलेगा इससे.

छोडो इन अविनाशों और संजयों को और अपना मन हरिकिर्तन में लगाओ अब.

या फिर उठो बालक, सामर्थ्य वान हो तो समाज के लिए सार्थक काम करो. ये किन पचडो में शरीर उमेठ रहे हो. लचक आ जाएगी और इस चक्कर में भक्त प्रमोद की पसंद का नीला कुर्ता ना फट जाए. फिर वो भी तुमको नही पुछेंगे.

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!