Saturday, July 14, 2007

हे बालक, यशवंत सिंह भड़ास वाले

बालक, माँ हुँ न। दुख होता है तेरी हालत देखकर। तुझ जैसी औलाद को जनम देकर न सिर्फ़ मेरी बल्कि हर माँ की कोख काली हो गई है। बालक, किस मिट्टी के बने हो। कभी सोचा है कि तुम्हारे भी परिवार है। उनकी नजर भी तुम्हारे लिखे पर पड़ सकती है। बालक, तु न सिर्फ़ इन्सानियत मे नाम पर एक बदनुमा धब्बा है बल्कि पुरी पत्रकारिता जगत को तु बदनाम कर रहा है। बाकि के पत्रकार क्यों चुप बैठे हैं, बालक, यह मैं नहीं समझ पा रही हुँ।

बालक, तु तो शुरु से गंदी भाषा का समर्थक रहा है। न भरोसा हो तो खुद का लिखा और अपने भाईयों का लिखा खुद पढ़ कर देख न, बालक।

क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं
क्या यह गाली और अश्लिलता नहीं

बालक, मैं तो तुझे पढ़ कर सोचने लगी कि तुझे तो तालीम देकर ही एक ऐसा पाप हो गया कि न तेरी पहली की पुस्तें मेरे साथ नरक जायेंगी बल्कि तेरा आने वाली पीढ़ियां भी तेरा नाम अपने से जुड़ा देखकर अपमानित महसूस करेंगी। अगर न भरोसा होता हो तो कभी अपनी पत्नी को कहना कि वो अपने परिवार में या पनी सहेलियों को तेरे ब्लाग का लिंक देकर पूछे कि कैसा लगा यह साहित्य...? बालक, तू अपने बच्चों के स्कूल में भी कभी यह बंटवा पायेगा। बालक, तुझे शरम आ जाये तो चिन्ता मत करियो, तेरे सुभचिन्तक तो बहुत जल्द तेरे ब्लाग को पहुँचा ही देंगे हर उस जगह, जहाँ लोगों को तेरा असल चेहरा पहचानना चाहिये। बालक, सुबह उठ कर पाऊडर की जगह खुद ही कालिख क्यों नहीं पोत लेता अपने चेहरे पर...? इतनी मेहनत की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।

बालक, अंकित माथुर ने तो वही किया जो तु करता आया है। फ़िर तु उससे नाराज क्यों हो गया...? इसका जुम्मेदार तो तु ही है न बालक। ऐसी भाषा का भारी समर्थक। तुने अंकित की पोस्ट ही हटा दी। तो तु भी तो नारद ही कहलाया, बालक। फ़िर विरोध कैसा नारद से...? तु भी तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगा रहा है। कहीं यह इसलिये तो नहीं बालक कि अंकित तेरी जमात का न हो, पत्रकार न हो जिनको तुने बदनामी के इस कागार पर पहुंचाया है।

बालक, तेरी इस सडांध मारती टीम में तो वो सुपारी मास्टर ६ इंच छोटा करने वाला राहूल पाण्डे जिसे अपने बाप दादाओं के पाण्डे होने पर शरम आती है, भी है। बालक, उसको समझा देना कि शरमाने की कोई बात नहीं है। क्योंकि वो उनकी औलाद नहीं है, वो तो सब संस्कारी हैं। बालक, मैं उन्हें जानती हूँ। वो भी इस उद्दंड बालक से अपना नाम जुडा देखकर शरम से मरे जा रहे हैं।

बालक, मुझे बताना कि क्या यह सब करके तुझे खराब नहीं लगता...? क्या तु कभी अपने आपसे बात नहीं करता...? क्या तुझे अपने आने वाले पीढ़ी के विशय मे कभी विचार नहीं आता...? क्या तुने कभी सोचा है कि आज नहीं, आज से काफ़ि समय बाद जब तेरी औलाद और उनका परिवार यह सब देखेगा तो उनको मुँह दिखा पायेगा...? क्या यह सब करके तु सारे पत्रकार समाज और इन्सानियत को बदनाम नहीं कर रहा...? कभी आराम से बैठ कर सोचना, बालक। क्या और कोई राह नहीं...? बस यही एक तरीका है...? अपने बीबी, बच्चों से ही पुछ कर देख ले, बालक। इस गंदगी में तुझे अपना नाम देते और तस्वीर चिपकाते शरम न आई...?

बालक, तेरे मुँह से यह बात सुनकर आश्चर्य होता है कि अंकित भाई, प्लीज, भड़ास को भड़ास ही रहने दीजिए, मस्तराम ना बनाइये। बालक, इसमें अंकित क्या करेगा...? यह तो तु और तेरे साथी मिलकर बना ही चुके हैं। उपर के लिंक देख न बालक।

बालक, तु कहता है कि जो भी लिखें उसे यह मानकर पोस्ट करें कि इसे हजारों गंभीर, प्रबुद्ध लोग पढ़ेंगे। महिलाएं-लड़कियां भी पढ़ेंगी। यह तुझे अब समझ आया। यह तु कह रहा है...? तेरा लिखा क्या इन लोगों के लिये सुगढ़ साहित्य है और अंकित भाई का लिखा मस्तराम। कहीं इसके पीछे तेरी कोई व्यक्तिगत भड़ास तो नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंकित माथुर पत्रकार हो ही न और तुम्हारे गुट में घुस आया हो। तेरी तो यह आदात रही है।

बालक, एक दिन तु ही कह रहा था न कि आरोप है कि बाज़ार की भाषा अश्लील है । भडासियों यह गाज कल को भडास पर भी गिर सकती है । भाई हम लोगों की भाषा भी सूटेड बूटेड बाबू लोगों जैसी पोकी पोकी नहीं है । हम सब ठहरे मस्त मलंग कब मुहँ ज्यादा खुल जाये और ठुस्की मार दे । तो भाई लोगों आपसी खींच तान थोडी देर को स्थगित करके जरा अपना विरोध दर्ज़ करिये । आज तुझे क्या हो गया...?

बालक किसी बात से डर गया है क्या...? या फ़िर कुछ आत्म ग्लानी मे दब गया है। बालक, वैसे तो तुने ऐसे काम किये हैं जो हमेशा के लिये हिन्दी और पत्रकारिता की दुनिया में एक बदनुमा दाग बन कर दर्ज हो चुके हैं। अगर आत्म ग्लानी वश, कुछ गलत कर लेने का या खुद को खतम कर लेने का मन बना रहा है तो वैसे तो यह पूरे हिन्दी ही नहीं, सारे समाज पर उपकार ही होगा। मगर फ़िर भी...

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!