Tuesday, July 10, 2007

हे बालक, जय प्रकाश मानस

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

न्यूयार्क में ताली बजाने की क़ीमतः डेढ़ लाख रुपये

आज पढ़ रही थी कि तुम कहते हो कि न्यूयार्क में ताली बजाने की क़ीमतः डेढ़ लाख रुपये . काफी समझदार हो गये हो. अभी कुछ दिन पहले तुम लंदन में ताली बजा रहे थे, वो फ्री में बजा आये थे क्या? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बार फ्री में जाने का जुगाड़ नहीं हो पाया तो तुम खुंदक खा गये. वही या उससे मिलता जुलता आयोजन, जिसमें तुम भीड़ का हिस्सा बन कर पहुँच पाये वो सार्थक और जहाँ जुगाड़ नहीं हो पाया वो और उसकी सफलता संदेहास्पद और संदिग्ध.लगता है, तुम कहना चाह रहे हो कि तुम ही सफलता के आधार हो. बालक, क्या ऐसा सोचना अच्छी बात है?

चुटकुलेबाज कवि

न्यूयार्क में सम्मेलन के दौरान दैनिक कार्यवृति की रिपोर्टिंग चुटकुलेबाज कवि करने वाले हैं-तुम्हारी मेहरबानी इतनी है कि तुमने उन्हें कवि तो मान लिया. वरना कवि पहचनाने की तुम्हारी बुद्धि पर ही प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है.

अखिल भारतीय मंचीय कवि और उनकी युवती पीए

बालक, तुम कहते हो कि अखिल भारतीय मंचीय कवि के युवती पीए को सिर्फ इसलिए खर्च करके आयोजक ले जा रहे हैं कि वह डीटीपी कार्य जानती है और वह वहाँ अपने बॉस का हाथ बटायेगी । (ऐसा कार्य आपमें से और कोई जानते हों कृपया दुखी न होवें ।). तुम्हारा इशारा किस ओर है, सब समझ रहे हैं. सारा भारत उन्हें एक बेहतरीन कवि मानता है. हर मंच पर वही दिखते हैं, टीवी पर छाये रहते हैं. अगर तुम बेहतर हो तो तुमको लोग क्यूँ नहीं पहचान पा रहे हैं. क्या सारा भारत और विश्व में हिन्दी जानने वाले मूर्ख हैं? तुम तो बालक, समझाते समझाते खुद ही दुखी हो गये.

उनको जरुरत तो एक सामान उठाने वाले कुली की भी थी मगर तुम्हें पता ही नहीं चल पाया वरना तुम्हारी हालत देखते हुये मैं मान सकती हूँ कि तुम उसमें जरुर चले जाते. जिस तरह से तुम दुखी हो, तुम कुछ भी कर सकते थे. सुना है तुम अमरीका जाने की काफी दिन से तैयारी कर रहे थे. सारे साथियों को बता चुके थे, इसलिये और बुरा लगा कि अब क्या मुँह दिखाओगे.

भारतीय विदेश मंत्रालय

उन्हीं मंत्री जी के आगे पीछे तुम लंदन में घूमते रहे, फोटो खिचवाते रहे और अब वही तुम्हें बेकार लगने लगे और तुम कहने लगे कि भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से ऐसे कोई प्रयास ही किये ही नहीं गये. बालक, इस बार सबको १० साल का वीसा मिल गया है, यह तो तुम्हारे दुख को और बढ़ा रहा होगा? तुमको लंदन का कितने साल का वीसा मिला था? बस एक बार का. कितने दुख की बात है.

आथित्य सत्कार

बात तो आथित्य सत्कार की भी की है तुमने. बालक, हर सड़क चलते को तो घर में नहीं रुकवाया जा सकता, बहुत मंहगे मंहगे विदेशी सामान इन लोगों के घर में खुले रखे रहते हैं. क्या पता तुम कब मचल जाओ. जैसी आज तुम्हारी हालत है, वैसे ही उन सामानों को न प्राप्त कर पाने से दुखी हो तोड़ने फोड़ने लग जाओ, जैसा तुम अमरीका न जाने पर विश्व हिन्दी सम्मेलन के साथ कर रहे हो. बालक, समझने की कोशिश करो. जिनका एक स्तर है, उन्हें यह लोग अपने घरों पर ठहरा भी रहे हैं और पूरा सत्कार भी कर रहे हैं हमेशा से और इस बार भी. तुम ऐसे ही दुखी होकर हल्ला करते रहोगे तो सब तुमको जान जायेंगे. फिर आगे भी कभी अगर तुम जा पाये तो ठहराना तो दूर, मिलने से भी कतरायेंगे वहाँ के लोग. बालक, वो लोग बहुत शांति प्रिय होते हैं. बस यही तुम्हें समझाना चाहती हूँ.

ब्लॉगरों जैसे दो कोड़ी के लेखक

बालक, तुम इतना दुखी हुये कि तुमने सबको अपनी वाली ही श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. तुम ऐसा क्यूँ मानते हो कि ब्लॉगरों जैसे दो कोड़ी के लेखकों को कम से कम भारत सरकार के वेबसाइट में तवज्जो तो दिया गया। यह बात तुम्हारे लिये तो समझ में आती है कि तुम दो कौड़ी के लेखक हो मगर क्या सब ही ऐसे हैं. बालक, जब तुम उसे कवि मानने से मना कर सकते हो जिसे पूरा भारत देश, तुम्हारे जैसे दिमाग के आभाव में, कवि मानता है. उस समय उसकी कविताओं का मजा उठाता है, जब तुम कुढते रहते हो, तो तुम ऐसा कह रहे हो इसमें कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ.

अमरीका रिटर्न

बालक, थोड़ी बेईज्जती तो हुई है, थोड़ा तैयारी में खर्चा भी हुआ है तो भी इतना दुखी होना ठीक नहीं कि तुम सही गलत में भेद करना भूल जाओ और सब जाने वाले लेखकों को पंचम-षष्ठम श्रेणी के शौकिया लेखक कहने लग जाओ और कहो कि वो खुश क्यूँ न हो, जब उन्हें अमरीका रिटर्न कहलाने का मौका मिलेगा.

मैने देख रही थी जब तुम लंदन रिटर्न बन कर लौटे थे. कितने खुश थे तुम.