Wednesday, July 18, 2007

हे बालक , ब्लाग लिखने वालो

बालकों, मैने कल सुना कि तुम लोग मां से डर रहे हो। बालकों, मां तो तुम सबकी रक्षा के लिये है। तुम सब से प्यार करती है। मां गन्दे बच्चों को डांटती है। सही राह दिखाती है। ज़ब बालक सुधर जाता है और अपनी गल्ती मान जाता है, तो उसे शाबासी भी देती है। प्यार करती है। ब्लागवानी वाले बालक को मैने शाबासी दी।

बच्चों, अभी पिछली बार ज़ब मैने भदोरिया को डांटा तो वो बदमाश बालक गंदी गंदी बातें करने लगा।। मै उसे सुधारना चाह रही हुं। वो तो पूरी ही तरह से बिगडा बच्चा है। उसकी बचपन की संगत और पागलपन का दौरा इसके लिये जुम्मेवार है। मैं अभी उसे और डांटूगी और ज़रुरी होगा तो मारुंगी भी। बच्चों, कई बार बिगडते बालक को सुधारने के लिये चांटे भी लगाना पडते हैं।

बच्चों, तुम सब कितने प्यार से रहते हो। मुझे देखकर अच्छा लगता है। तुम सब इस गन्दे बालक को साथ में मत रखना, बिगड जाओगे। फिर तुमको भी डांट पडेगी। यह तुम्हारे साथ खेलने आये तो भगा देना। पहले ही कई बार कई जगह से इसे भगाया गया है मगर यह हर बार नई नई ज़गह जाता रहता है। मुझे तो किसी ने बताया है कि बहुत शराब भी पीने लग गया है यह बदमाश बालक और उसी के नशे मे गंदी गंदी बात करता है। नशे मे लिखता है।

बाकी सब बच्चे आपस में प्यार से खेलो। आपस में लडना मत। गंदी बात मत करना। मै देख रही हुं। कोई भी गल्ती करोगे तो समझाउंगी और डाटूंगी। बस, मां को इतना ही चाहिये की उसके बच्चे अच्छे निकले। कोई उन्हें बिगाडे नहीं और वोह बिगडे नहीं।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!