Thursday, July 12, 2007

हे बालक, क्या ब्लॉगवाणी भी तानाशाह नारद है...?

हे बालक ब्लोगवाणीधीश,

सुना था कि नारद की तानाशाही से तंग आकर तुमने ब्लॉगवाणी शुरु किया था। बालक, मैं बहुत खुश हो गई थी। आजकल तानाशाही ज्यादा दिन नहीं चलती। तुमने इसके खिलाफ़ मंच बनाया जबकि अन्य मंच भी आ चुके थे। चिट्ठा जगत, हिन्दी ब्लॉगस भी हैं। मैं तुम सब की बहादुरी से खूब खुश हो गई थी।

आज रात जब मैंने तुम्हारे भाई अफ़लातून को डांटा, तब तुम्हें मालूम ही नहीं चला। बालक, शायद तुम कहीं गये हुये थे। तुम्हारा ब्लॉगवाणी तो ऑटोमेटिक है, वो लग गया तुरंत दिखाने मेरी फ़टकार। बिल्कुल बालक अफ़लातून की रजिस्ट्रेशन वाली पोस्ट के नीचे। बेटा, मैं थोड़ी देर के लिये तुम्हारी चाची के साथ टहलने चली गई।

इस बीच तुम घर लौट आये और बालक अफ़लातून ने तुम्हें रो रो कर मेरी फ़टकार वाली बात बताई। तुम्हारा भाई प्रेम मातॄ प्रेम से ज्यादा उपर चला गया। आखिर उसने तुम्हारा प्रचार प्रसार भी खूब किया था। फ़िर तुमने न सिर्फ़ मेरी फ़टकार वाली पोस्ट अलग कर दी बल्कि पहले वाली पोस्टें भी हटा दी। बालक , इसे ही तो ब्लॉग बैन करना कहते हैं जिससे की तुम इतना तिलमिला गये थे कि क्या क्या न कर दिया।

बालक, अब तुम कैसे कहोगे कि तुम नारद नहीं हो। वो भी तो अपने भाई पर फ़टकार से तिलमिला गया था और एक ब्लॉग बैन कर गया था। वही काम आज तुमने किया।



बालक,

मैं देख रही हुँ कि यही तुम्हारा भाई अफ़लातून, राहूल ( पाण्डेय) बाजार का अतिक्रमण वाला, को बैन करने पर नारद के खिलाफ़ नारे लगा रहा था और कितने सारे भाई नारद को इसलिये छोड़ दिये कि वहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा नहीं. वहाँ बैन लगते हैं. आज वो राहूल भड़ास से लिखता है और उसे तुमने बैन कर रखा है जबकि चिट्ठाजगत उसे दिखाता है . बालक, यह सब लोग फ़िर तुम्हारे साथ क्यों जुड़ रहे हैं , वही आदमी तो यहाँ भी बैन है जिसके वज़ह से यह नारद पर धौस दिखाकर भागे थे. बालक , अब उन्हें चुप देखकर थोड़ा उनके दोगलेपन पर दुख होता है. पूछ कर बताना बालक उनसे कि वो तुमको कहीं इसलिये छोड़ने की धमकी नहीं दे पा रहे क्योंकि फ़िर जायेंगे कहाँ ...?

भड़ास तो हिन्दी ब्लॉग पर भी बैन है. वो लोग नाराज हों तो कहना कि माँ ने पूछा है . बालक, सेक्स क्या को भी तुम नारद की ही तरह नहीं दिखा रहे. मैं बहुत चकित हुँ कि जब तुम और नारद एक से हो , तो तुमने अलग से क्यों शुरु किया!!! अपनी उर्जा वहीं लगाते. कहीं कोई और छिपा उद्देश्य तो नहीं जो तुम लोगों को बता नहीं रहे हो. शायद कोई हिडन अजेंडा हो. ऐसे में इस तोडफोड के जुम्मेदार तुम कहलाओगे. कैसे सो पाओगे एक हरे भरे बाग में आग लगा कर.



बालक, मैने तुम्हें उस समय भी समझाया था कि इस जगत में कोई भी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं होता। जिसका किया काम है तुम जब उसको ही डांटोगे, गाली बकोगे, उसकी मन मर्जी के खिलाफ़ जाओगे, तो वह जरुर अपने सामर्थ के अनुरुप तुमको रोकेगा। तब तुम कहते थे कि यह तानाशाही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा का गला घोंटा जा रहा है। यह सार्वजनिक स्थल न हो कर व्यक्तिगत स्थल है। मुझे यहाँ नहीं रहना।

बालक, आज मैं तुमसे पूछती हुँ कि तुमने क्या किया ...? यह ठीक वही चीज नहीं है जो नारद ने की थी और फ़िर यहाँ पर तो गाली भी नहीं दी गई। बस एक माँ की अपने बिगडे बालक को फ़टकार थी।



तुम्हारी इच्छा है, चाहो तो गल्ती सुधार लो। मेरा दूसरा बालक, चिट्ठाजगत वाला तो इसे दिखा ही देगा। मुझे नहीं लगता कि अभी यह तानाशाही की आँधी वहाँ तक पहुँची है।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है !