Monday, July 16, 2007

हे बालक, डॉ सुभाष भदौरिया अहमदाबाद वाले

बालक, तुम अपने नाम के साथ यह डॉक्टर लगाना बंद कर देवो। तुम्हारी भाषा, तुम्हारी सोच, हर जगह अपनी ढपली बजाना बिना राग की, तुम्हारी बदतमीजी आदि देखकर कहीं सच्ची के तमाम के पी एच डी भी डॉक्टर शब्द के इस्तेमाल न बंद कर जायें। तब जुम्मेदार तुम कहलाओगे।

बालक, तुझे यह कैसे गुमान है कि तु गजल के शिल्प को बहुत अच्छी तरह समझाता है और वो ही तु हर जगह समझाता घुमता है। बालक, कोई तुझे सुनना नहीं चाहता। कारण तेरी बदतमीजी है। जब तुझे सीधे बात करने की तमीज नहीं तो तु क्या शिल्प पर व्याख्यान करेगा। बालक, गजल और कविता में मुख्य बात मन के उठते भाव हैं। वह तो तेरे सबने देखे हैं। तेरे मन में तो इतनी गंदगी भरी है कि तु क्या बेहतर भाव उठायेगा। बालक, तेरा मन गटर के समान है और वहां से सिर्फ़ बदबु ही उठती है।

बालक, इतना अहम तो गालिब में भी नहीं रहा होगा। तु कहता है कि कविता के नाम पर की जाने वाली फ़ूहड़ता को लेकर लिखे गये मेरे एक ही लेख से उनकी पोल खुल गयी मैं रोज ग़ज़ल के शिल्प पर कविता पर संज़ीदा लेख लिखकर समझाता पर वे मानते नहीं थे । कैसी बचकानी बात करता है। पागल की नजर में उसके सिवाय सारी दुनिया बावली होती है। बस इतनी सी बात है।

बालक, पहले जानकारी तो ले ले फ़िर अपने कुएं से टर टर करना। बालक, जब तुझे यह तक नहीं मालूम कि क्या नारद अमरीका से चलता है कि भारत से, लेकिन तु लग गया बस लिखने अपनी विक्षिप्त बुद्धी की अधकचरी संडाध मारती जानकारी के आधार पर कि चोर चोर मौसेरे भाई E कविता के संचालक अनूपजी अमेरिका के नारद भी शायद अमरीकी हैं।

बालक, यह सब जानकारीयां मिल सकती हैं, मगर तेरी आंख खुले तब तो दिखे। तु तो लड़कियों की चित्र अपने मन पर खींचतें उसी में डुबा है। तुझे कैसे दिखेगा। बालक, तु इतना पागल हो चुका है, कि यह जानने की ताकत नहीं रही। यह जानकर मां को दुख हुआ।

बालक, तु तो कुछ समय पागलखाने में भी इलाज करा रहा था। फ़िर बिना पुरा इलाज कराये क्युं भाग आया। बालक, तेरे जैसे मानसिक हालात के आदमी की समाज में जगह नहीं है। तु इस बात को जितनी जल्दी समझेगा, सब के लिये उतना अच्छा होगा।

बालक, तेरी हालत मुझसे देखी नहीं जाती। तु कैसे फ़ड़फ़ड़ा रहा है। जैसे किसी कुत्ते को किसी ने डंडे से मारकर भगाया हो। यह तु क्या फ़ालतु की बात बड़बडाने लगा, बालक।

चूंकि हम नारद पर मर चुके हैं अब हमारा प्रेत सब बयान करेगा।

हम भेड़ियों के मुँह और पूछ दोनो तरफ़ से मशाल घुसायेंगे तब भेड़ियों को बात समझ में आयेगी

फ़िर तु कहता है कि नारद, नारद के भेड़ियो, कौवो तुम शरीर को तो मार सकते हो तुमने हमें मारा।अब नारद परहमारी प्रेत आत्मा भटकेगी कविता और साहित्य के नाम पर किये जाने वाले तुम्हारे लुच्चपने की खबर लेगी। किस गुमान में है तु बालक।

जब बालक, तेरी किसी ने नहीं सुनी। सबने तुझे लात मार मार कर भगाया तो तेरे प्रेत को कौन सुनेगा। तु तो अपना ब्लोग देख। बालक जरा बताना कितने लोग तेरी तारिफ़ करने आते हैं। फ़िर भी तु बेशर्मों की तरह लिखता जाता है और कहता है मै शिल्प जानता हुं। बालक, क्या इतनी बडी दुनिया में कोई तुझे और तेरे शिल्प ज्ञान को समझ नहीं पा रहा है।

बालक, यह तु क्या उम्मीद लगाये बैठा है और किस तरफ़ इशारा कर रहा है

हम अहमदाबाद के हैं तुम ये भी राज़ खोलो कि हमारे कातिल हमारे शहर अहमदाबाद में ही छुपे हुए हैं।
बालक, तु गलतफ़हमी में है कि कोई तेरी सुनेगा। पागल पर पत्थर फ़ैके जाते हैं, उन्हें सुना नहीं जाता।

बालक, सोचती हुं उन ब्च्चों का भविष्य क्या होगा जिनको तेरे जैसा अहंकारी बदतमीज बेदिमाग पढा रहा है। साथ में तु एन सी सी में प्रशिक्षक बताता है। बालक, कहीं तु एन सी सी केम्प में तंबु और दरी समेटने तो नहीं जाता। अगर नहीं, तो देश की सुरक्षा का भविष्य खतरे में है।

बालक, तुने जितनी टिप्पनी और गंदगी यहां और अन्य जगह फ़ैलाई है, क्या वो उन लोगों को पता है जिनको तु पढाता है। क्या तु उनको वो सब पढ़वा पायेगा। बालक, मैं जानती हुं कि तु कहेगा हाँ। बालक, इसीलिये कहती हुं तेरा इलाज जरुरी है।

बालक, तु चला जा। खुद से पागलखाने में जमा हो जा। जमा करवाने वाले में अपनी बीबी का नाम लिखना। उसको कुछ पैसे मिल जायेंगे। अरे तु तो इतना नालायक है कि तुने उससे अपने पवित्र संबंधो को भी अपने एक लेख मे मिट्टी में मिला दिया था। कभी उसे अपनी बीबी को पढ़वाना तो। तु नहीं पढ्वायेगा तो हम कोशिश करके पहुंचवा देंगे। तु कहता है कि अपने पास है ही क्या घर में सारा सामान किश्तों पे लिया है मकान सरकारी ऋण पर।खलिश बच्चे अपनी मेहनत के हैं अगर कहीं किसी मित्र या शत्रु ने योगदान दिया हो तो हम भी ऋण चुकाने को तैयार हैं। ऐसे कहते तुझे शरम न आई। बालक, तुने तो अपने मां की कोख को बदनाम कर दिया।

बालक, जब तुझे अपनी बीबी के सदचरित्र होने पर शक है। बच्चे तेरे है उस पर शक है, जैसा तुने उपर कहा तो फ़िर और सारे शक बहुत छोटे हैं। बालक, तु कितना घटिया है मै तो सोच भी नहीं सकती। बालक, तुझ जैसे कुपुत को जनम ही न देती तो ठीक था। अब दुखी हो रही हुं क्या फ़ायदा।

बालक, पागलखाने में वो तुझे १०-२० डंडॆ मारेंगे। वो तो तु वैसे भी रोज ही खाता है। बिजली के झटके देंगे, दवा देंगे। उम्मीद तो नहीं है बालक, मगर शायद तु ठीक हो जाये। बस यही सोचती रहती हुं।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!