Friday, July 20, 2007

हे बालक, सखी संप्रदाय वाले संजय बैगानी

बालक, तुम्हारी शिकायतें तो शुरु से आती थी। मैं यह सोचती थी कि बालक धीरे धीरे सुधर जायेगा। तसल्ली यह भी रहती थी कि अभी फ़तूर चढा है। फ़िर शांत हो जाओगे। बालक, बस तुमसे एक ही चिन्ता नहीं रहती कि तुम मेरे दुसरे उद्दंड बालक सुभाष भदौरिया की तरह गंदी और भद्दी गालियां नहीं बकोगे।

मगर बालक, तेरा भी बार बार झगडा देखकर दिल घबराता है। बालक, तू कभी हिन्दु मुसलमान पर बहस करता है। कभी गांधी पर, कभी मोदी के गुजरात पर। कोई कह रहा था कि तु मोदी को खुराक पहुंचाता है। जहां भी झगडा चल रहा होता है तु वहां चला जाता है और बिन मांगे अपनी राय रखने लगता है फ़िर विवाद बढता है और कोई तेरी आलोचना कर देता है तो तुझसे बरदास्त नहीं हो पाता। तुरंत गुस्सा आ जाता है। बालक, इतना गुस्सा आता है तो विवाद में पडता क्यों है। क्यों हर तरफ़ जुम्मेदारी लेने घुमता है। बालक, कोई कह रहा था कि एक बार झगडा मचा और जब तक तु पहुंचा तो झगडा बंद हो गया था, तब तुझे बहुत दुख हुआ और तु टिपीनी करके आया था कि देर हो गई आने में। यहां तो सब शांत हो गया बरना हम भी यज्ञ में आहुति दे लेते। बालक, यह क्या हाल बना लिया है।

जब बहुत दिन तक कुछ नहीं होता तो तुझे तबियत खराब लगने लगती है तो कभी हिन्दी, फ़िर हिन्दी सम्मेलन पर हल्ला मचाने की कोशिश करता है। बालक, कोई हल्ला नहीं मच पाया उन पर। अब क्या नया सुगुफ़ा छोडने वाला है। बडा डर लगा रहता है।

अभी कुछ समय के पहले जब सब उस गुजरात की लडकी पूजा के समर्थन में बात कह रहे थे तब तुम अखबार से कांट छांट कर दुसरा पक्ष तलवार भाजने के लिये उठा लाया। अखबार तो सब पढते हैं, बालक। फ़िर तुझको ही क्यों नजर आया कि सबको पढवाऊं। बस, बहुत दिन विवाद न हो तो तेरा मुंह उतर जाता है। बालक, पहले तो तेरा ऐसा स्वभाव नहीं था। कहीं तेरी संगत उस सुभाष भदौरिया से तो नहीं हो गई है। मैने उसे बहुत डांटा है। अभी और डाटूंगी और जरुरत पडी तो चांटा भी लगा दुंगी। अगर ऐसा है तो बहुत बुरी बात है। बालक, उसका साथ तुरंत छोड दे। उसके साथ में कोई मत खेलो। वो संक्रमन फ़ैलाने वाला कीड़ा है। सब गंदगी करेगा। तु उसके दिखते ही पत्थर मारकर भाग जाया कर। पाप नहीं लगेगा और तु बिगडेगा भी नहीं।

बालक, कोई बता रहा है कि तु नारद के तानाशाह कर्णधारों में से एक है। वो तो कह रहा था मुख्य तानाशाह घुम रहे हैं तो सारी तानाशाही की ताकत तेरे पास दे गये है क्योंकि तु उस मंडली का नम्बर दो है उपर से। बालक, यह कैसी तानाशाही है कि माँ भवानी को भी तुम लोग नारद पर नहीं आने देते। मां तो बालक, भदौरिया की तरह गाली भी नहीं बकती। बस, बिगडते बच्चों को फ़टकारती है। बालक, क्या संस्कार सिखाना गलत है। क्या अपनी भदौरिया जैसी पागल और शराबी औलाद को डांटना गलत है जो मां को ही गाली बकता है। उसको बैन करके तुमने अच्छाई का परिचय दिया है। देखो, चिट्ठाजगत और ब्लॉगवानी कब तक इस गंदगी को अपने यहां सजा कर रखते हैं।

बालक, मेरी बात मान जाये तो अच्छा। तु तमाम विवाद में मत पड़ा कर। बहरहाल कोई बता रहा था कि कोई तुझको कदाचित गंदा नेपकीन कह रहा था। फ़िर बात इतनी बढ गई कि उस मुर्ख उद्दंड बालक ने तुझे ६ इंच छोटा करके जान से मारने की धमकी दे डाली। बालक, मै तो घबरा ही गई थी। दो दिन सो नहीं पाई। तु हमेशा कहता है कि यह विचारों की नहीं संस्कारो की लड़ाई है। इसका मतलब तु भी मानता है कि यह लडाई है। क्या जरुरत है इसमे पडने की।

फ़िर तु दिल्ली ब्लॉग मिटिंग मे भी चला गया। जायेगा क्यूं नही। तेरे मंडली के बडे तानाशाह आ रहे थे। जी हजुरी करने गया होगा ताकि तेरी तानाशाही भी आड में चलती रहे। वहां कोई विवाद का मुद्दा नहीं मिला क्या।

मुझे तो लगता है बालक, तु अपनी आदत के अनुसार वहां भी सफ़ाई देने गया होगा। तु हर जगह सफ़ाई देने क्यों पहुंच जाता है और फ़िर भी अपनी बात पर अडा रहता है।

बालक, क्यों अपने दुस्मन इक्कठे करते जा रहा है। गुस्से पर काबु पाना सीख। गुस्से मे किसी की तौहीन करने के बजाये उस समय लिखा ही मत कर। हल्ला मचाने के लिये भदौरिया जैसे पागल गाली गलौज करते घुम रहे हैं। तु तो समझदार है। कान पकड कर माफ़ी मांग मां से। अब झगडा मत किया कर। फ़िर से कोई जान से मारने की धमकी न दे दे।

माँ हुँ बालक, चिंता होती है!